"आसमां की उड़ान शहर के नाम"//(एक व्यंग) हमें पहचान बनानी है, चलो शहर में चलते हैं। हर अपनो की बानी है, चलो शहर में चलते हैं।। हमें पहचान बनानी है.....।। वहीं लोग तो मिलते हैं, जो जीना सिखलाते हैं। जब अपने न मिलते हैं, तब शहरी कहलाते हैं।। हमें पहचान बनानी है.....।। कहते हैं अब भरो उड़ान, देखों तुम अब यहीं जहान। खुले आसमां में उड़ करके, बनाओ अब देश महान।। हमें पहचान बनानी है.....।। वहां कोई न रोक टोक है, न रीति रिवाज का बंधन है। बस पैसों का खेल वहाँ हैं, उसी से जीवन कुंदन है।। हमें पहचान बनानी है.....।। धन दौलत से "राज" वहां है,बस रिश्ते का नाम न हो। "प्रिय" तो वैसे सब कुछ है, बस पैसों की बात न हो।। हमें पहचान बनानी है.....।। नंबर से सब पहचानेगे, नाम का कोई मोल न होगा। कालोनी ही पहचान बनेगी, माँ-पापा का मोल न होगा।। हमें पहचान बनानी है.....।। छोड़ो गली मोहल्ला गाँव, चलो चले अब शहर की छाँव। छोड़ो पैदल साइकिल नाँव, चलो गाड़ी रेल हवा की छाँव।। हमें पहचान बनानी है.....।। सब कुछ देती ये दुनिया, जो सबको भरमाती है। बस लोगों के अन्दर ये, "सच्चा" प्रेम न भर पाती है।। हमें पहचान बनानी है.....।। 🖋#कुशवाहाजी 🖋 ©राजेश कुशवाहा #Morningvibes हमें पहचान बनानी है। ।