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क्यूं आंसू बहाएं हम क्यूं जग को दिखाएं हम टूटे हुए

क्यूं आंसू बहाएं हम
क्यूं जग को दिखाएं हम
टूटे हुए हैं अंदर
क्यूं सबको बताएं हम
                         क्यूं गैरों से हम ये चाहें
                         फैलाकर अपनी बाहें 
                         वो हमको गले लगाएं
                         और ढांढस हमें बंधाएं
क्यूं बेचारे बन रहे हैं
गिरकर संभल रहे हैं
कोई आकर सहारा देगा
उम्मीद पाले चल रहे हैं
                          दुनियां का क्या कहें हम 
                          किस मुगालते में रहे हम
                          दर्द कोई भी बंटाता नहीं
                          कब तक ये दर्द सहें हम
क्यूं न अब खुद को संभालें
मुश्किलों से बाहर निकालें 
उम्मीद सिर्फ खुद से लगाएं 
आओ खुद को रहबर बनालें।

©Amar Deep Singh
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