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कमवक्त यह एहसास भी अपनी सीमाएं नहीं तोड़ती, खुद को

कमवक्त यह एहसास भी अपनी सीमाएं नहीं तोड़ती,
खुद को खुद के अन्दर कहीं दफ़न कर के बैठी हुई हैं,
मैंने खुद को सैकड़ों बार समझाया,
मगर यह कमवक्त साथ नहीं छोडती,
फिर मैं किसी को कैसे खुद के लिए भी बदल दूं,
शायद इसमें भी कहीं छुपी मेरी खुदगर्जी होगी,
इसमें खुद का भी दोष कहीं सम्मिलित ही होगा,
किसी और के एहसासों को दबा दूं मनमर्जी होगी।
आशुतोष शुक्ल (उत्प्रेरक)

©ashutosh6665 #Love #poem #poems
कमवक्त यह एहसास भी अपनी सीमाएं नहीं तोड़ती,
खुद को खुद के अन्दर कहीं दफ़न कर के बैठी हुई हैं,
मैंने खुद को सैकड़ों बार समझाया,
मगर यह कमवक्त साथ नहीं छोडती,
फिर मैं किसी को कैसे खुद के लिए भी बदल दूं,
शायद इसमें भी कहीं छुपी मेरी खुदगर्जी होगी,
इसमें खुद का भी दोष कहीं सम्मिलित ही होगा,
किसी और के एहसासों को दबा दूं मनमर्जी होगी।
आशुतोष शुक्ल (उत्प्रेरक)

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