बंधन नल अब केवल नल नही है है अवश्य ही है शूरवीर कोई अभय,अद्वतीय,अभेद्य, अजर जो मन से भी गहरा है और मानव से भी खतरनाक जिसके मानस में बसती हैं लाखो आस्थाएँ ,अर्घ्य,अस्थियाँ पूजा,पिंडदान,पितरों के पुण्य और पीढ़ियों के पाप पुनीत गंगा औऱ कालजयी यमुना,प्रबल कोसी प्रचंड गंडक ,प्रपाती नर्मदा और प्रगाढ़ परम्परा की धात्री सरयू। इन सबका स्वाद अलग है ,भरा है चम्बल का पानी जंगली सम्वेदनाओं के अंतर्विरोध से,अवशेष मिल जाएंगे शुको और भोजो के बेतवा में मिठास है महाकाल के पाँव पखारती शिप्रा में वहाँ के भजन की और भोग की ,नर्मदा में रिश्तों की कड़वाहट है और बेतवा में पठारी संस्कृति के आंसुओं का खारापन। पर ये नल जिनमे ये सब बसी हैं उसका पानी रिक्त है स्वाद से संवादों से प्रसादों से इनका भी कोई कल नही है नल अब केवल नल नही है ये हैं हज़ारों आँखों में पसरा घना इंतज़ार । आँखे जो शुष्क है मुन्सिपल्टी के नल की तरह । वो अपने आखों में आसुओं के आने का और जाने का समय भी जानती नही है वो नही जानती की क्या कहे उस प्यासे कौए को कहाँ डाले वो कंकड़ या भर दे पहाड़ उसकी काया में की उसके नैनो से नीर झरे और उसकी प्यास बुझे क्योंकि इक्कीसवीं सदी में इन मटको को मारने वाला भी नल ही हैं।तालाबो को सुखाने वाला ,सिंधु के।कुओ को जलाने वाला दिल्ली के भी यही है इसी ने पाट दी टँकीया मार्ग में विकास के पाट दी संस्कृतयाँ पानी की लाश से । ईस दौर में जब जल नही है नल अब केवल नल नही हैं नल अब वो प्रजाति है जो तेज़ी से हो रही है विलुप्त इनका नाम किसी सूची में नही आया ना छपी सुर्खियां अख़बारों में इनकी निर्मम हत्या की गुमशुदा के इश्तिहार भी नही मिले सरकारी दीवारों पे न हुई रैलियां ,ना बहस चर्चा लिखा गया तो एक समय कल नुक्कड़ की पानी के टँकी पर टैंकर के आने और जाने खुशियों के जीने का और मर जाने का एक बात बताऊँ ऐसा ही सन्नाटा था मरने से पहले नदियों के,कुईओं के ,तालाबों के लगता है अब वो समय दूर नही जब नलों की आत्मकथा लिखी, जाएगी तुम्हारी किताबों में। होंगे उसपर शोध,लगाई जाएंगी गांधी के साथ मे दीवार पर उसकी चमचमाती सी तस्वीर रख दिया जाएगा इन्हें संग्रहलयों में शीशे के पीछे और कर दी जाएगी घोषित एक सरकारी छुट्टी नलों के नाम पर भी और इस तरह बेचे जाएंगे उपकरण ज़हर लीलने के नन्घि प्यास के बज़्ज़ार में #abhivynjna