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हमरी प्रेम कहानी भाग 9 ******************* कल जन्म

हमरी प्रेम कहानी भाग 9
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कल जन्माष्टमी का मेला शुरू होने वाला था। भोलन चच्चा का रूप देख मन दुःखी हुआ था। अभी तक सरोज को नाटक देखने का न्योता और पुल के बारे में नहीं बताई थे। मन मे बड़ा उथल पुथल चल रहा था। घर मे एक अजीब सा सन्नाटा था। माँ की हालत बिगड़ी पड़ी थी। बाबूजी का ताश बंद पड़ा था।दलान एकदम से सूना था। गांव के बहुतेरे लोग कुश्ती देखने और मेला की तैयारी देखने मे व्यस्त थे। 
हम आंगन जाके छोटकी से बोले"ए छोटकी....पता नही आगे का होएगा?भोलन चच्चा गेम खेल गए हैं। हमको कुछ ठीक नही लग रहा...देखे से तो एकदम भोले और मददगार दिखते हैं। हमको लगता है कोई बड़ा गुल खिला रहे। 
छोटकी तू जरा माई का खयाल रख आज हम एक बार अपने पुल से उ पट्टी जाने का सोच रहे। 
छोटकी हमरी तरफ देख के बोली....भैया ये जेतना भी नेता भक्ता और प्रतिष्ठित सब को देख रहे हो न सब अंदर से कालिख पुता है। गिरगिट है ई सब। जल्दी जाना और जल्दी आ जाना। बाबूजी डॉक्टर के हिंया से जब तक आएं लौट आना।हम माई के पास हैं तब तक।
हम घाट किनारे भागे। थोड़ी देर में सरोज आती दिखी। हमको देख के हंसी और गले मिलने का इशारा की।
हम उसको वंही रुकने का इशारा कर पम्प घर के तरफ दौड़े।वो आश्चर्य से हमको देख रही थी। कुछ देर में हम उसकी आंख से ओझल हो गए।
वो कुछ समझ पाती तब तक हम दौड़ के चचरी पुल से उ पट्टी पहुंच गए। उसको लगा हम चले गए है सो पानी लेके मुड़ी...हाथ से देकची छूट के गिर गया....पीछे हम हांफते हुए खड़े थे।
पहले वो दो तीन बार आंख मिटमिटाइ...फिर झपट के सीने से लग गई। हमदोनो बस एक दूसरे को महसूसते रहे।हममें से किसी को विश्वास नहीं था कि हमलोग एक दूसरे से गले मिले हुए है। 
हम उसका चेहरा हथेली से ऊपर उठा के बोले...अब हम कभी भी तुमसे मिल सकते है...उसका हाथ खींचते हुए हम उसको पुल दिखाने के लिए ले चल।
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पुल देख के वो दंग रह गई। हमसे बोली ई तुम बनाए हो?हम मुस्कुरा के बोले "तुमरे लिए"।उ मेरा हाथ पकड़ के पुल पे दौड़ गई। पुल के बीच मे पहुंच के हांफते हुए दोनों हाथ उड़ने के अंदाज में खोल के जोर से आवाज दी....हे दुर्गा मैया हमका और दिलखुसवा के कभी अलग नही करना"।हम झट उसके मुंह पे हाथ रखके बोले...अरे.. रे..रे चिल्लाओ नहीं कोई सुन देख लेगा।
इससे पहिले हम कुछ और बोलते वो चूम ली हमको।फिर से हमरा गले लग के बोली"तुम जिनगी भर ऐसा ही रहना"। हम उसको अपने नाटक के बारे में बताए और देखने जरूर आने बोले।
वो बोली बाबूजी अकेले जाने देंगे तब न।
हम बोले तुम अपने सहेली सब के साथ आना। गुलाबो के साथ त आ ही सकती हो।
वो आंख में आंसू भर के बोली"गुलाबो अब नही है दुनिया मे..उका चेचक हुआ था..।
हम सन्नाटे में चले गए। फिर बोले चलो कोई बात नही।वो अच्छी थी भगवान ऊको हमेशा खुश रखेंगे।
इस बार सरोज बोली पर तुम चिंता नही करो हम आएंगे जरूर।बाबूजी को बोलके मासी के घर रुक जाएंगे।पर तुमरा नाटक जरूर देखेंगे। हम खुश हो गए।
वो बोली चलो अभी चलते हैं बहुत देर हो गया। 
हम बोले सुनो ना कल से मेला शुरू हो जाएगा। कल सुबह हम फिर आएंगे तुमरे पास।
वो बोली देखते है। अगर नहीं आ पाए त दोपहर में बाबूजी के साथ मासी घर ही आ जाएंगे।
हम ठीक है बोलके विदा हुए।एक दूसरे को मुड़-मुड़ के देखते हुए पुल के दो विपरीत सिरे के तरफ बढ गए
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अभी पम्प घर के पास पहुंचे ही थे कि नजर एक हुजूम आदमी पे पड़ी जो पुल के तरफ बढ़ रहे थे। हम लपक के पम्प घर के पीछे छिप गए। भीड़ जरा पास आई त सब स्पष्ट हुआ।आगे-आगे मुखिया जी और भोलन चाचा थे। पीछे सरपंच साहब के साथ मोहर बाबू,लोहरा और 8-10 आदमी।  कुछ के हाथ मे फूल का माला था। वो लोग बतियाते आगे बढ़ रहे थे।
पुल के पास पहुंच के मुखिया जी पुल पे चढ़ के हाथ से सबको शांत रहने का इशारा किये। सब चुप हो गए।मुखिया जी बोलना शुरू किए "आज आप सब जो यहां इकट्ठे हुए है तो मैं ये बता दूं कि श्री भोलन जी का यह एक सराहनीय प्रयास रहा जिसे वो पिछले 15 दिन से खून-पसीना एक कर दोनों पट्टी के लोगों के बीच सौहार्द बढ़ाने और उनको जन्माष्टमी जैसे महापर्व का आनंद उठाने के लिए इस पुलिया  का निर्माण किया। उन्होंने इस बात को इसलिए गौण रखा कि इसमें मेला के चंदे का 450 रुपिया इन्होंने खर्च किया और वो नहीं चाहते थे कि काम शुरू होने से पहिले चख-पख हो। अभी तत्काल इस पुल से दोनों पट्टी के लोगों का भला होगा परन्तु मेला के समाप्ति के साथ ही हम भोलन जी को मुखिया फंड से और 1500 रुपिया दे इस पुल को मजबुत और टिकाऊ बनाने का आग्रह करूंगा। इसके साथ ही मोहर बाबू के आभारी है जिन्होंने अपने बगीचे से बांस देकर भोलन जी को इस सपने को साकार करने में मदद किये। लोहरा के कलेजे का दाद देतें हैं जो अपने उपजाऊ खेत के मिट्टी काटने की अनुमति दिए और इस पुल के निर्माता के रूप में दर्ज हुए। मेला के बाद सामूहिक रूप से पंचायत में इनके सराहनीय योगदान के लिए इनको नवाज जाएगा।
मुखिया जी और भोलन चाचा कुटिल मुस्कान से एक दूसरे को देखे।
बांकी सब जिंदाबाद का नारा लगाया और फूल का माला मुखिया जी और भोलन को पहिना हाथ से कुछ इशारा किया। "बेखबर"अखबार वाले का एक आदमी हाथ मे कैमरा लेके आगे बढ़ा.... खचक... खचक के साथ लाइट चमका। सब लोग नारा लगाते पुल से उ पट्टी के तरफ बढ़ गए।
मेरे कलेजे से खून का कुछ बूंद आंखों में तैर गया।
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शाम को भोलन चाचा मीटिंग रखे।हमको भी बुलाएं। ठीक 4 बजे वो मीटिंग में उपस्थित हुए।बड़े तेजस्वी स्वर में बोले। इस बार का मेला यादगार रहेगा। एक तो बेहतरीन नाटक के लिए दूसरा हम जो पुल से उ पट्टी को जोड़ दिए त भाड़ी भीड़ होगा मेला देखने को।बीच मे कनखी से हमको देख रहे थे। हम चुपचाप सब सुनते रहे। उन्होंने कहा देखो ई नाटक देखने DM साब भी स्पेसल गेस्ट में आ रहे।कोई गड़बड़ नहीं हो।पाठ सबको याद हो गया है ना।प्रोमटर सिर्फ ये इशारा करेगा अब किसको कब बोलना है। ये नाटक मेरे इज्जत पे आ गया है। ऐसा नाटक पिछले 8-10 साल में कभी नही हुआ।सब सहमति में सिर हिलाया
छेदन पूछ लिया।भैया ई पुल आप कब बनवाएं।हमलोगों को बताएं भी नही। हम सब मदद करते त और टिकाऊ पुल बनता।
भोलान चाचा मुस्कुरा के बोले।सामाजिक कार्य का ढिंढोरा नहीं पीटा जाता। मेला के बाद उसपे भी सोचेंगे..क्या दिलखुश.??
मन मे आया उसके मुंह मे जूता घुसेड़ दूँ...बस मुस्कुरा के हाँ बोल दिया।
मीटिंग समाप्त हुआ।भोलन चाचा रुकने का इशारा कर  अंदर गए। हम द्रोपदी सा खड़े रहे।वो वापस आए त कुर्ता के जेबी से 50 रुपिया निकाल के हमको दिए...बोले ई तुमरा है....बांकी 450 में से 150 रुपिया मुखिया को भी देना है।मेरा पीठ थपथपा के विदा किये। हम बली के बकडे की तरह चल दिये जिसे कल जबह होना था।
पर मन ही मन कुछ संकल्प लिए जा रहे थे।शायद ....बदला...नहीं नहीं ऐसे लोगों का भंडाफोड़...ना..नाटक का सत्यानाश....छोड़ेंगे नहीं किसी को
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रात में नींद नही आया। सुबह 4 बजे उठके ही घाट तरफ बढ़ लिए। साथ एक झोला था। वहां पहुंच के पहले मन मे आया कि पुल को बीच से तोड़ दे।फिर सरोज का चेहरा घूम गया नजर में। तुरंत झोला से सामान निकाल कुछ लिखने लगे। जब पूरा हुआ त पुल के बीच बढ़ गए। वहां जाकर बोर्ड लगा दिया""मिलन घाट" पे आपका स्वागत है"हम रहे न रहे।
रोशनी फैलने से पहले भाग के घर आए और सो गए।
9 बजे नींद खुली।
दातुन लेके बाहर निकले त बच्चा लोग का झुंड सुबह से ही मेला देखने के अफरा-तफरी में लगा मिला। हम दातुन करते हुए लोगों के आना-जाना देख रहे थे। एक नवयुवक की टोली बतियाते आ रहा था।ई बार मजा आ जाएगा।उ पट्टी के लोग सब भी जमा होंगे। एक से एक लड़की और ठेंगवन सब। धमाल होगा।
हम बस सबको सुन रहे थे। एक लड़का बोला"अरे उ घाट का नाम पता है"मिलन घाट है आजे सुबह देखे।दूसरा बोला मुखिया जी अपने छिनार है और का नाम  रखते?तीसरा मजाक किया "अपन उ पट्टी वाली मछुआरिन का नाम से रख देते त मजे आ जाता....सब हंस के आगे बढ़ गया।
हमे माई की चिंता सता रही थी।दवा का कोई असर नही था।अंदर जाके उनको दूध दिया।आज वो दूध भी ना पी सकी। छोटकी सिरहाने बैठ माथा दावा रही थी। बाबूजी के ऊपर इलाज का 1200 रुपये का कर्ज हो गया था वो अपने कमरे में गुमसुम बिछावन पे लेटे थे।
हम छोटकी को 50 रुपिया देके सारी बात बताएं।वो बोली सब छिछोड़ा है देखना मेले के बाद क्या क्या होता है? पर अब इस सबको छोड़ना भी नही है। आने दो मौका सबको सबक सिखाती हूँ। वो उठके रसोई चली गई। हम माई के सिहराने ही बैठ कर अपने नाटक का रोल पढ़ने लगे।
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मेले का पहला दिन था।काफी गहमा-गहमी थी गांव में। 3 बजके शाम के बाद लोगों की आवा-जाही काफी बढ़ गया था। हम चाय पिये और सोचे चल के दुर्गा मंदिर में प्रणाम कर आए। घर से निकल के मंदिर की तरफ बढ़े। अभी 500 मीटर भी नही गए होंगे कि एक जानी-पहचानी आवाज कानो से लगी। हमरी नजर आवाज को ढूंढने लगी। 2-3 लड़की आगे झुंड बना के चल रही थी। हम जरा कदम तेज कर नजदीक पहुंचे। देख के दंग रह गए....उ सरोज थी..हमरी सरोज हमरे सामने चली जा रही थी...पहले लगा दौड़ के गले लगा लें....फिर चुप-चुप पीछे चलते रहे। दुर्गा मंदिर में जाके हम माथा टेके और अंदर जाके स्तुति करने लगे। बीच-बीच मे आंख खोल के मुआयना भी कर रहे थे। तभी लगा जैसे मंदिर का रौनक़ बढ़ गया। नीले सलवार सूट में सरोज अंदर आई।खुले बाल,दो लट पीछे की तरफ चोटी जैसा गूंथा हुआ। हाथ मे मेहंदी। वो बिना देखे हमरे बगल में हाथ जोड़ खड़ी हो गई। हम सारा स्तुति भूल गए। जैसे ही वो  वंदना खतम की हम केहुनी से मार के बोले...का..का..बोली माता महारानी से...वो आंख चौड़ा कर हमको देखने लगी। हम धीरे से उसको बाहर अकेले मिलने बोले....वो पैर से हमरा अंगूठा दबा के कुछ बोली। हम उधर देखे त सब लड़की हमरे तरफ देख रही थी...हम दुर्गा मैया को 5-6 बार प्रणाम करते  हुए बाहर निकल गए। मंदिर परिसर से बाहर आके इन्तेजार करने लगे।
...लगभग 20 मिनट बाद सरोज अकेले आती दिखी। हम एक तरफ टहल दिए....उ रास्ता गांव के बाहर वाले तालाब पे निकलता था। वो पीछे आ रही थी।
जब गांव का रोड खतम हुआ त हम पगडंडी पे बढ़ने लगे।वो एकबार रुकी..फिर धीरे से बोली...सुनो न हम कहाँ जा रहे?
हम बोले थोड़ा दूर और एक बगीचा है।वंही
वो डरती हुई पर अभिमंत्रित मेरे पीछे आती रही। जब हम बगीचे में पहुंचे सन्नाटा था। आम और कनेर ऐसे उलझ गए थे कि धूप भी सही से जमीन को नहीं मिलता था। हम एक जगह पालथी मार के बैठ गए।वो पास आके खड़ी हो गई। हम बस एकटक उसे देख रहे थे
एकाएक हम पूछे...अच्छा सरोज...कल को अगर हम नहीं रहे त क्या करोगी...वो झट घुटने के बल बैठ मेरे मुंह पे हाथ रख दी।
हम बच्चे की तरह उससे लिपट गए। वो मेरा माथा सहला के बोली...तुम हमेशा उल्टा-सीधा बात काहे करता है? हम केतना जिद करके तुमरे पास आ गए ना। हम उसके गोद मे माथा रख रोने लगे। सरोज ई पुल हमरे जान का दुश्मन बन गया है। बहुत आदमी हमरे पीछे पड़ गया है।3 महीना से किताब-कॉपी नहीं छूए है। 7 महीना और बचा है परीक्षा को इस बार पक्का फैल कर जाएंगे।
वो बोली तुम एतना जुनूनी हो कैसे फैल कर जाओगे? सब ठीक होगा। 
हम उसको अपना घर का हाल बताए। फिर थोड़ा जिद करके बोले कल एक बार आओ न हमरे घर तरफ तुमको माई और छोटकी से मिलाना है।
वो हंस के बोली शादी से पहिले बहु चौखट नहीं लांघती। 
हम बोले त आज ही शादी कर लो ना... वो मेरा मुँह देखने लगी। हम फिर जोर देकर बोले,आज कच्चा वाला शादी कर लेते हैं फिर बाद में पक्का वाला शादी कर लेंगे। उसकी चुप्पी मेरे लिए सहमति बन गई
हम झटपट कुछ कनेर का फूल तोड़ लाए,घास में गूंथकर माला बना लिए। एगो गोल पत्थर को बीच मे रखके भगवान बनाए। थोड़ा सुखा पत्ता और घास जमा कर आग जला दिए।जैसे ही उसका हाथ पकड़ने आगे बढ़े वो थोड़ा सहम के बोली...ई सब मत करो...दोष लिखता है भगवान,
हम बोले अब कितना लिखेगा?बोलके उसका हाथ पकड़े और लगे फेरा लगाने।माटी से उसका सिंदूर किये और 7 जनम तक साथ रहने का वादा।
उसका हाथ थामे वापस गांव के तरफ चल दिये
********** #हमरी प्रेम कहनी भाग 9

#PranabMukherjee
हमरी प्रेम कहानी भाग 9
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कल जन्माष्टमी का मेला शुरू होने वाला था। भोलन चच्चा का रूप देख मन दुःखी हुआ था। अभी तक सरोज को नाटक देखने का न्योता और पुल के बारे में नहीं बताई थे। मन मे बड़ा उथल पुथल चल रहा था। घर मे एक अजीब सा सन्नाटा था। माँ की हालत बिगड़ी पड़ी थी। बाबूजी का ताश बंद पड़ा था।दलान एकदम से सूना था। गांव के बहुतेरे लोग कुश्ती देखने और मेला की तैयारी देखने मे व्यस्त थे। 
हम आंगन जाके छोटकी से बोले"ए छोटकी....पता नही आगे का होएगा?भोलन चच्चा गेम खेल गए हैं। हमको कुछ ठीक नही लग रहा...देखे से तो एकदम भोले और मददगार दिखते हैं। हमको लगता है कोई बड़ा गुल खिला रहे। 
छोटकी तू जरा माई का खयाल रख आज हम एक बार अपने पुल से उ पट्टी जाने का सोच रहे। 
छोटकी हमरी तरफ देख के बोली....भैया ये जेतना भी नेता भक्ता और प्रतिष्ठित सब को देख रहे हो न सब अंदर से कालिख पुता है। गिरगिट है ई सब। जल्दी जाना और जल्दी आ जाना। बाबूजी डॉक्टर के हिंया से जब तक आएं लौट आना।हम माई के पास हैं तब तक।
हम घाट किनारे भागे। थोड़ी देर में सरोज आती दिखी। हमको देख के हंसी और गले मिलने का इशारा की।
हम उसको वंही रुकने का इशारा कर पम्प घर के तरफ दौड़े।वो आश्चर्य से हमको देख रही थी। कुछ देर में हम उसकी आंख से ओझल हो गए।
वो कुछ समझ पाती तब तक हम दौड़ के चचरी पुल से उ पट्टी पहुंच गए। उसको लगा हम चले गए है सो पानी लेके मुड़ी...हाथ से देकची छूट के गिर गया....पीछे हम हांफते हुए खड़े थे।
पहले वो दो तीन बार आंख मिटमिटाइ...फिर झपट के सीने से लग गई। हमदोनो बस एक दूसरे को महसूसते रहे।हममें से किसी को विश्वास नहीं था कि हमलोग एक दूसरे से गले मिले हुए है। 
हम उसका चेहरा हथेली से ऊपर उठा के बोले...अब हम कभी भी तुमसे मिल सकते है...उसका हाथ खींचते हुए हम उसको पुल दिखाने के लिए ले चल।
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पुल देख के वो दंग रह गई। हमसे बोली ई तुम बनाए हो?हम मुस्कुरा के बोले "तुमरे लिए"।उ मेरा हाथ पकड़ के पुल पे दौड़ गई। पुल के बीच मे पहुंच के हांफते हुए दोनों हाथ उड़ने के अंदाज में खोल के जोर से आवाज दी....हे दुर्गा मैया हमका और दिलखुसवा के कभी अलग नही करना"।हम झट उसके मुंह पे हाथ रखके बोले...अरे.. रे..रे चिल्लाओ नहीं कोई सुन देख लेगा।
इससे पहिले हम कुछ और बोलते वो चूम ली हमको।फिर से हमरा गले लग के बोली"तुम जिनगी भर ऐसा ही रहना"। हम उसको अपने नाटक के बारे में बताए और देखने जरूर आने बोले।
वो बोली बाबूजी अकेले जाने देंगे तब न।
हम बोले तुम अपने सहेली सब के साथ आना। गुलाबो के साथ त आ ही सकती हो।
वो आंख में आंसू भर के बोली"गुलाबो अब नही है दुनिया मे..उका चेचक हुआ था..।
हम सन्नाटे में चले गए। फिर बोले चलो कोई बात नही।वो अच्छी थी भगवान ऊको हमेशा खुश रखेंगे।
इस बार सरोज बोली पर तुम चिंता नही करो हम आएंगे जरूर।बाबूजी को बोलके मासी के घर रुक जाएंगे।पर तुमरा नाटक जरूर देखेंगे। हम खुश हो गए।
वो बोली चलो अभी चलते हैं बहुत देर हो गया। 
हम बोले सुनो ना कल से मेला शुरू हो जाएगा। कल सुबह हम फिर आएंगे तुमरे पास।
वो बोली देखते है। अगर नहीं आ पाए त दोपहर में बाबूजी के साथ मासी घर ही आ जाएंगे।
हम ठीक है बोलके विदा हुए।एक दूसरे को मुड़-मुड़ के देखते हुए पुल के दो विपरीत सिरे के तरफ बढ गए
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अभी पम्प घर के पास पहुंचे ही थे कि नजर एक हुजूम आदमी पे पड़ी जो पुल के तरफ बढ़ रहे थे। हम लपक के पम्प घर के पीछे छिप गए। भीड़ जरा पास आई त सब स्पष्ट हुआ।आगे-आगे मुखिया जी और भोलन चाचा थे। पीछे सरपंच साहब के साथ मोहर बाबू,लोहरा और 8-10 आदमी।  कुछ के हाथ मे फूल का माला था। वो लोग बतियाते आगे बढ़ रहे थे।
पुल के पास पहुंच के मुखिया जी पुल पे चढ़ के हाथ से सबको शांत रहने का इशारा किये। सब चुप हो गए।मुखिया जी बोलना शुरू किए "आज आप सब जो यहां इकट्ठे हुए है तो मैं ये बता दूं कि श्री भोलन जी का यह एक सराहनीय प्रयास रहा जिसे वो पिछले 15 दिन से खून-पसीना एक कर दोनों पट्टी के लोगों के बीच सौहार्द बढ़ाने और उनको जन्माष्टमी जैसे महापर्व का आनंद उठाने के लिए इस पुलिया  का निर्माण किया। उन्होंने इस बात को इसलिए गौण रखा कि इसमें मेला के चंदे का 450 रुपिया इन्होंने खर्च किया और वो नहीं चाहते थे कि काम शुरू होने से पहिले चख-पख हो। अभी तत्काल इस पुल से दोनों पट्टी के लोगों का भला होगा परन्तु मेला के समाप्ति के साथ ही हम भोलन जी को मुखिया फंड से और 1500 रुपिया दे इस पुल को मजबुत और टिकाऊ बनाने का आग्रह करूंगा। इसके साथ ही मोहर बाबू के आभारी है जिन्होंने अपने बगीचे से बांस देकर भोलन जी को इस सपने को साकार करने में मदद किये। लोहरा के कलेजे का दाद देतें हैं जो अपने उपजाऊ खेत के मिट्टी काटने की अनुमति दिए और इस पुल के निर्माता के रूप में दर्ज हुए। मेला के बाद सामूहिक रूप से पंचायत में इनके सराहनीय योगदान के लिए इनको नवाज जाएगा।
मुखिया जी और भोलन चाचा कुटिल मुस्कान से एक दूसरे को देखे।
बांकी सब जिंदाबाद का नारा लगाया और फूल का माला मुखिया जी और भोलन को पहिना हाथ से कुछ इशारा किया। "बेखबर"अखबार वाले का एक आदमी हाथ मे कैमरा लेके आगे बढ़ा.... खचक... खचक के साथ लाइट चमका। सब लोग नारा लगाते पुल से उ पट्टी के तरफ बढ़ गए।
मेरे कलेजे से खून का कुछ बूंद आंखों में तैर गया।
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शाम को भोलन चाचा मीटिंग रखे।हमको भी बुलाएं। ठीक 4 बजे वो मीटिंग में उपस्थित हुए।बड़े तेजस्वी स्वर में बोले। इस बार का मेला यादगार रहेगा। एक तो बेहतरीन नाटक के लिए दूसरा हम जो पुल से उ पट्टी को जोड़ दिए त भाड़ी भीड़ होगा मेला देखने को।बीच मे कनखी से हमको देख रहे थे। हम चुपचाप सब सुनते रहे। उन्होंने कहा देखो ई नाटक देखने DM साब भी स्पेसल गेस्ट में आ रहे।कोई गड़बड़ नहीं हो।पाठ सबको याद हो गया है ना।प्रोमटर सिर्फ ये इशारा करेगा अब किसको कब बोलना है। ये नाटक मेरे इज्जत पे आ गया है। ऐसा नाटक पिछले 8-10 साल में कभी नही हुआ।सब सहमति में सिर हिलाया
छेदन पूछ लिया।भैया ई पुल आप कब बनवाएं।हमलोगों को बताएं भी नही। हम सब मदद करते त और टिकाऊ पुल बनता।
भोलान चाचा मुस्कुरा के बोले।सामाजिक कार्य का ढिंढोरा नहीं पीटा जाता। मेला के बाद उसपे भी सोचेंगे..क्या दिलखुश.??
मन मे आया उसके मुंह मे जूता घुसेड़ दूँ...बस मुस्कुरा के हाँ बोल दिया।
मीटिंग समाप्त हुआ।भोलन चाचा रुकने का इशारा कर  अंदर गए। हम द्रोपदी सा खड़े रहे।वो वापस आए त कुर्ता के जेबी से 50 रुपिया निकाल के हमको दिए...बोले ई तुमरा है....बांकी 450 में से 150 रुपिया मुखिया को भी देना है।मेरा पीठ थपथपा के विदा किये। हम बली के बकडे की तरह चल दिये जिसे कल जबह होना था।
पर मन ही मन कुछ संकल्प लिए जा रहे थे।शायद ....बदला...नहीं नहीं ऐसे लोगों का भंडाफोड़...ना..नाटक का सत्यानाश....छोड़ेंगे नहीं किसी को
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रात में नींद नही आया। सुबह 4 बजे उठके ही घाट तरफ बढ़ लिए। साथ एक झोला था। वहां पहुंच के पहले मन मे आया कि पुल को बीच से तोड़ दे।फिर सरोज का चेहरा घूम गया नजर में। तुरंत झोला से सामान निकाल कुछ लिखने लगे। जब पूरा हुआ त पुल के बीच बढ़ गए। वहां जाकर बोर्ड लगा दिया""मिलन घाट" पे आपका स्वागत है"हम रहे न रहे।
रोशनी फैलने से पहले भाग के घर आए और सो गए।
9 बजे नींद खुली।
दातुन लेके बाहर निकले त बच्चा लोग का झुंड सुबह से ही मेला देखने के अफरा-तफरी में लगा मिला। हम दातुन करते हुए लोगों के आना-जाना देख रहे थे। एक नवयुवक की टोली बतियाते आ रहा था।ई बार मजा आ जाएगा।उ पट्टी के लोग सब भी जमा होंगे। एक से एक लड़की और ठेंगवन सब। धमाल होगा।
हम बस सबको सुन रहे थे। एक लड़का बोला"अरे उ घाट का नाम पता है"मिलन घाट है आजे सुबह देखे।दूसरा बोला मुखिया जी अपने छिनार है और का नाम  रखते?तीसरा मजाक किया "अपन उ पट्टी वाली मछुआरिन का नाम से रख देते त मजे आ जाता....सब हंस के आगे बढ़ गया।
हमे माई की चिंता सता रही थी।दवा का कोई असर नही था।अंदर जाके उनको दूध दिया।आज वो दूध भी ना पी सकी। छोटकी सिरहाने बैठ माथा दावा रही थी। बाबूजी के ऊपर इलाज का 1200 रुपये का कर्ज हो गया था वो अपने कमरे में गुमसुम बिछावन पे लेटे थे।
हम छोटकी को 50 रुपिया देके सारी बात बताएं।वो बोली सब छिछोड़ा है देखना मेले के बाद क्या क्या होता है? पर अब इस सबको छोड़ना भी नही है। आने दो मौका सबको सबक सिखाती हूँ। वो उठके रसोई चली गई। हम माई के सिहराने ही बैठ कर अपने नाटक का रोल पढ़ने लगे।
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मेले का पहला दिन था।काफी गहमा-गहमी थी गांव में। 3 बजके शाम के बाद लोगों की आवा-जाही काफी बढ़ गया था। हम चाय पिये और सोचे चल के दुर्गा मंदिर में प्रणाम कर आए। घर से निकल के मंदिर की तरफ बढ़े। अभी 500 मीटर भी नही गए होंगे कि एक जानी-पहचानी आवाज कानो से लगी। हमरी नजर आवाज को ढूंढने लगी। 2-3 लड़की आगे झुंड बना के चल रही थी। हम जरा कदम तेज कर नजदीक पहुंचे। देख के दंग रह गए....उ सरोज थी..हमरी सरोज हमरे सामने चली जा रही थी...पहले लगा दौड़ के गले लगा लें....फिर चुप-चुप पीछे चलते रहे। दुर्गा मंदिर में जाके हम माथा टेके और अंदर जाके स्तुति करने लगे। बीच-बीच मे आंख खोल के मुआयना भी कर रहे थे। तभी लगा जैसे मंदिर का रौनक़ बढ़ गया। नीले सलवार सूट में सरोज अंदर आई।खुले बाल,दो लट पीछे की तरफ चोटी जैसा गूंथा हुआ। हाथ मे मेहंदी। वो बिना देखे हमरे बगल में हाथ जोड़ खड़ी हो गई। हम सारा स्तुति भूल गए। जैसे ही वो  वंदना खतम की हम केहुनी से मार के बोले...का..का..बोली माता महारानी से...वो आंख चौड़ा कर हमको देखने लगी। हम धीरे से उसको बाहर अकेले मिलने बोले....वो पैर से हमरा अंगूठा दबा के कुछ बोली। हम उधर देखे त सब लड़की हमरे तरफ देख रही थी...हम दुर्गा मैया को 5-6 बार प्रणाम करते  हुए बाहर निकल गए। मंदिर परिसर से बाहर आके इन्तेजार करने लगे।
...लगभग 20 मिनट बाद सरोज अकेले आती दिखी। हम एक तरफ टहल दिए....उ रास्ता गांव के बाहर वाले तालाब पे निकलता था। वो पीछे आ रही थी।
जब गांव का रोड खतम हुआ त हम पगडंडी पे बढ़ने लगे।वो एकबार रुकी..फिर धीरे से बोली...सुनो न हम कहाँ जा रहे?
हम बोले थोड़ा दूर और एक बगीचा है।वंही
वो डरती हुई पर अभिमंत्रित मेरे पीछे आती रही। जब हम बगीचे में पहुंचे सन्नाटा था। आम और कनेर ऐसे उलझ गए थे कि धूप भी सही से जमीन को नहीं मिलता था। हम एक जगह पालथी मार के बैठ गए।वो पास आके खड़ी हो गई। हम बस एकटक उसे देख रहे थे
एकाएक हम पूछे...अच्छा सरोज...कल को अगर हम नहीं रहे त क्या करोगी...वो झट घुटने के बल बैठ मेरे मुंह पे हाथ रख दी।
हम बच्चे की तरह उससे लिपट गए। वो मेरा माथा सहला के बोली...तुम हमेशा उल्टा-सीधा बात काहे करता है? हम केतना जिद करके तुमरे पास आ गए ना। हम उसके गोद मे माथा रख रोने लगे। सरोज ई पुल हमरे जान का दुश्मन बन गया है। बहुत आदमी हमरे पीछे पड़ गया है।3 महीना से किताब-कॉपी नहीं छूए है। 7 महीना और बचा है परीक्षा को इस बार पक्का फैल कर जाएंगे।
वो बोली तुम एतना जुनूनी हो कैसे फैल कर जाओगे? सब ठीक होगा। 
हम उसको अपना घर का हाल बताए। फिर थोड़ा जिद करके बोले कल एक बार आओ न हमरे घर तरफ तुमको माई और छोटकी से मिलाना है।
वो हंस के बोली शादी से पहिले बहु चौखट नहीं लांघती। 
हम बोले त आज ही शादी कर लो ना... वो मेरा मुँह देखने लगी। हम फिर जोर देकर बोले,आज कच्चा वाला शादी कर लेते हैं फिर बाद में पक्का वाला शादी कर लेंगे। उसकी चुप्पी मेरे लिए सहमति बन गई
हम झटपट कुछ कनेर का फूल तोड़ लाए,घास में गूंथकर माला बना लिए। एगो गोल पत्थर को बीच मे रखके भगवान बनाए। थोड़ा सुखा पत्ता और घास जमा कर आग जला दिए।जैसे ही उसका हाथ पकड़ने आगे बढ़े वो थोड़ा सहम के बोली...ई सब मत करो...दोष लिखता है भगवान,
हम बोले अब कितना लिखेगा?बोलके उसका हाथ पकड़े और लगे फेरा लगाने।माटी से उसका सिंदूर किये और 7 जनम तक साथ रहने का वादा।
उसका हाथ थामे वापस गांव के तरफ चल दिये
********** #हमरी प्रेम कहनी भाग 9

#PranabMukherjee