कब थी आपत्ति शिव को, परशुराम की ख्याति से। कब थी क्षति परशुराम को, देवव्रत की वृद्धि से। कब थी इर्ष्या द्रोण को, अर्जुन की प्रसिद्धि से। हर्ष प्राप्त हुआ उन्हें जब भी,