कल एक पहाडों पर चढ़कर कुछ देख रहा था, ओ कहीं गुनगुना रही थी, फिर ढूँढा इधर उधर फिर देखा ओ मुस्कुरा रही थी मैं देखता ही रहा ओ कुछ मुझे समझा रही थी मैं कुछ सझम नहीं पाया ओ हँसी और बोली - मैं जिंदगी हूँ तुझे जीना सीखा रही थी।। प्रकृति बचाओ संस्कृति बचाओ ©Rudra chhattarpal singh shandilya #रूद्रकिकविताएं #Butterfly