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जीवन के सामान्य रिश्ते पक्की कोलतार की सड़कों पर



जीवन के सामान्य रिश्ते पक्की कोलतार की सड़कों पर दौड़ते-भागते , तपते - झुलसते ...वहीं अपना दम तोड़ देते हैं। इन रिश्तों का संचालन गणित करता है ... केवल गणित ... ! 
किसने, कितने किलोमीटर,  कितनी रफ़्तार से तय किए ?
 कौन , कितनी जल्दी आगे बढ़ गया व कौन पीछे छूट गया ... ? 
बस इतने से गणित में ही उम्र गुज़ार लेते हैं ऐसे रिश्ते । 

जीवन में ऐसे बहुत कम रिश्ते होते हैं जो कच्चे रास्तों पर जन्म लेते हैं । वे उन्ही कच्चे रास्तों पर धीमे धीमे पकते हैं ... 
ये चंद रिश्ते ...धूप - छांव चुनने के रिश्ते होते हैं ....
धूप में साथ चलते - चलते रुक कर पेड़ की छांव में सुस्ताने के रिश्ते होते हैं...
अपनी एक एक श्वास  को महसूस करने के रिश्ते होते हैं ..


अक्सर सड़क पर चलता इंसान कच्चे रास्ते पर चलते इंसान को अपनी ओर खींचता है । बल्ब की तेज़ रोशनी दिखाता है , सौंधी धूप को कोसता है । 
अक्सर कच्चे रास्ते पर चलता आदमी सड़क का रुख़ कर लेता है .... 
वह गुनगुनी धूप , पेड़ों की नर्म छांव , हथेलियों का कोमल स्पर्श , मिट्टी की सौंधी महक , प्रेम का स्पर्श .... सब कुछ छोड़ कर चल देता है किलोमीटरों की रेस में ...
भागते - दौड़ते एक दिन झुलस कर कोलतार बन जाता है और पक्की  सड़क में मिल जाता है । 

कच्चे रास्ते ख़ाली रह जाते हैं...
हृदय अछूता ही रह जाता है ...

मीनाक्षी

©Meenakshi 
  #srijanaatma