रात से रात भर, बात होती रही, ज़िन्दगी से मुलाक़ात होती रही।। रात भर ज़िक्र तेरा ही चलता रहा, रात भर बस तेरी बात होती रही।। मुझको ढांढस बंधाने आई थी पर, देखकर, रात भर, रात रोती रही।। अब्र नज़रों के सारे फना कर दिये, जाने क्यूँ, फिर ये बरसात होती रही।। हर कदम पर बिसातें बिछाई गई, जीत होती रही, मात होती रही।। क्या पता, कब सितारे जाने लगे, नव सवेरे की शुरुआत होती रही।। रात से रात भर, बात होती रही।।। #raat #prashant #psr