यादों का मौसम, धीरे धीरे छा रहा है मुझ पर, और ना चाह कर भी खुद को, धकेल रहा हूंँ मैं तन्हाइयों के मंज़र में। कितने सुहाने वह दिन थे जब, हमारे रिश्ते भी प्यार से महकते थे, खोए रहते थे हम शाम के वक़्त, इस नायाब प्रकृति के संग। वक़्त बदला, मौसम बदला, वो भी अपने वादे से बदली, बसंत गई हमारी ज़िंदगी में से, और पतझड़ का मौसम छाया। काली तन्हाइयों का साया छाया, जो अपने थे वह भी हमारे खिलाफ हुए, ना रहा अब कोई किरदार हमारा, रहा अब तो मैं और मेरी तन्हाइयां। -Nitesh Prajapati ♥️ मुख्य प्रतियोगिता-1055 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊 ♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।