यह पूरा संसार बूचड़खाना है, और इसमें ठहरने वाले हम सब शराबी! ऊपरवाला साकी बनकर माया रूपी, मदिरा पैमाने में भरता जाता है! उसे हम सब अमृत समझ कर, जीवन भर घूंट पर घूंट लेते रहते हैं! "सुधांशु निराला" #राष्ट्रवादी_युवा_कवि_सुधांशु_निराला# #spiritual thought# nirala.je