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अल्फाज़ थे कुछ जो लबों तक ही रह गए जज़्बात थे कुछ

अल्फाज़ थे कुछ जो लबों तक ही रह गए
जज़्बात थे कुछ जो अश्क बनकर बह गए

शोर-ए-क़ियामत दर्मियाँ थी तब शायद
हम कुछ समझे नहीं,वो सब कुछ कह गए

जख्म-ए-जुदाई तो भर चला है, दर्द ये है
कि ये दर्द वो भी सह गए,हम भी सह गए

दोष किसका था ये कोई कैसे हिसाब करता
हम कसमें गिनाते गए, वो वादे गिनाते गए

जुदाई का मलाल कुछ इस कदर धोया हमनें
समंदर में हम डूबते रहे वो बारिश में भीगते गए

बताएं क्या जुदाई का सबब इस जमाने को 
जितने करीब आते गए उतने दूर जाते गए।

©Amar Deep Singh
  #hindigazal #Love #shayri

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