ग़ज़ल वह मेरे रूबरू आ के बैठ गई इश्क़ की जुस्तुजु अा के बैठ गई जब भी महफ़िल में ग़ज़लों का दौर चला उनकी ही गुफ्तुगु आ के बैठ गई जैसे देखा था मैंने हकीकत उसे ख़्वाब में हू ब हु आ के बैठ गई मेरे भी जिस्म से खुशबू आने लगी तितली वह रंग आे बु आ के बैठ गई दिल संभालता नहीं नज़रें थकती नहीं सामने जब से तु आ के बैठ गई अब ग़ज़ल में मेरी नगमगी आ गई बुलबुलें कू ब कु आ के बैठ गई सुन के अरशद ग़ज़ल रश्क करने लगीं महजबीं चार सु आ के बैठ गई अरशद अंसारी फतेहपुर #अरशद #arshadansarigazal