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ग़ज़ल वह मेरे रूबरू आ के बैठ गई इश्क़ की जुस्तुजु

ग़ज़ल
वह मेरे रूबरू आ के बैठ गई
इश्क़ की जुस्तुजु अा के बैठ गई
जब भी महफ़िल में ग़ज़लों का दौर चला
उनकी ही गुफ्तुगु आ के बैठ गई
जैसे देखा था मैंने हकीकत उसे
ख़्वाब में हू ब हु आ के बैठ गई
मेरे भी जिस्म से खुशबू आने लगी
तितली वह रंग आे बु आ के बैठ गई
दिल संभालता नहीं नज़रें थकती नहीं
सामने जब से तु आ के बैठ गई
अब ग़ज़ल में मेरी नगमगी आ गई
बुलबुलें कू ब कु आ के बैठ गई
सुन के अरशद ग़ज़ल रश्क करने लगीं
महजबीं चार सु आ के बैठ गई

अरशद अंसारी फतेहपुर #अरशद #arshadansarigazal
ग़ज़ल
वह मेरे रूबरू आ के बैठ गई
इश्क़ की जुस्तुजु अा के बैठ गई
जब भी महफ़िल में ग़ज़लों का दौर चला
उनकी ही गुफ्तुगु आ के बैठ गई
जैसे देखा था मैंने हकीकत उसे
ख़्वाब में हू ब हु आ के बैठ गई
मेरे भी जिस्म से खुशबू आने लगी
तितली वह रंग आे बु आ के बैठ गई
दिल संभालता नहीं नज़रें थकती नहीं
सामने जब से तु आ के बैठ गई
अब ग़ज़ल में मेरी नगमगी आ गई
बुलबुलें कू ब कु आ के बैठ गई
सुन के अरशद ग़ज़ल रश्क करने लगीं
महजबीं चार सु आ के बैठ गई

अरशद अंसारी फतेहपुर #अरशद #arshadansarigazal