रचना- १३: संत नहीं तन, मन होता है, ऐसा जीवन, धन होता है। काम, क्रोध, मद, लोभ लुप्त सब, पल- पल एक हवन होता है।। जल, भोजन और हवा जगत में, काया को करती पोषित है। इंसानियत ओढ़नी ले लो, सुंदर अंत कफ़न होता है।। मीरा बनी श्याम की जोगन, सूर भये वैरागी। तुलसी भजें राम धुन क्षण-क्षण, भक्त विजय, जब रण होता है।। धारो मन में शान्ति सागर, व्यभिचारण 'विक्षोभ' ना हो। सदाचार का स्रोत 'हृदय' जब, प्यासा पथिक तृप्त होता है।। सदा सुमंगल दायक जीवन, समरसता आधार बने। त्यागी और तपस्वी का हर, अंतर्द्वंद दमन होता है।। ©Tara Chandra #सन्त