मैं भी एक कवि होता आज दिल किया कुछ खास कर जाऊँ तो मन बनाया की कविता पर ही कविता लिख आऊँ कविता का सोंदर्य शब्दों में बयान हो नहीं सकता इसकी सच्चाई का केसे बखान करूँ जी करता है इसके अर्थों का गुणगान करूँ जिसके हर शब्द हर बात में गहराई है जो शब्दों से खेल जाता है वही इसको समझ पाता है रूप माधुर्य इसका अनूठा अंग है कवि और कविता रहते संग है इसके मनमोहक रूप को करते सभी बयान है कोई कहता राधा तो किसी के लिए मीरा का श्याम है भावनाओ और अर्थों में होते कई राज है कभी बने शबरी तो कभी बने ताज है इसको पढ़ने व समझने के लिए साहित्य समुद्र में लगाना होता है गोता खास मैं भी एक कवि होता महेंद्र बंशी मेघवंशी