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मिर्ज़ा ग़ालिब - हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू

मिर्ज़ा ग़ालिब

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हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है 

तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तुगू क्या है 

चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन 

हमारे जैब को अब हाजत-ए-रफ़ू क्या है 

जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा 

कुरेदते हो जो अब राख जुस्तुजू क्या है 

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल 

जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है

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मिर्ज़ा ग़ालिब

©@thewriterVDS
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