एक रोज़ मैं खो दूँगा ये गोश्त का थैला इसकी गर्म हवा खून से लतपत जिगर अरमानों की आग सीने की जलन ख़्यालों का समागम और सबसे ऊपर अपना मन इसी थैले के कपड़ो के साथ शायद इसे न गंगा नसीब होगी न छु पाएगी आग इसको दफ़न होना तो वैसे भी दूर की बात हैं खुद के पाने की तलाश में ऐसा मुमकिन हैं भला लैला इतनी आसानी से किसी को मिली हैं? इन सब को बहुत पीछे छोड़ मैं उससे मिलूँगा उस पहाड़ी मैदान में ढलते सूरज की चमक के साथ ख़ैर सावन आने को हैं तुम बताओ तुम अभी तक ज़िंदा हो? तुम मरे नहीं? उज्ज्वल~ ©Ujjwal Sharma एक रोज़ मैं खो दूँगा ये गोश्त का थैला इसकी गर्म हवा खून से लतपत जिगर अरमानों की आग सीने की जलन ख़्यालों का समागम और सबसे ऊपर अपना मन