खोदी थीं कब्र अपने दर्द को दफनाने क़े लिये इसमें थकान इतनी ज्यादा होगी ये मुझे मालूम नहीं था हर मोड़ पर लेती रही इम्तहाँ ये जिंदगी मेरा सिफर ही मेरी फ़ितरत होंगी यह मुझे मालूम नहीं था सांस थीं इसीलिए आँसू भी बहते रहे शायद आँसू भी लेते है साँसें ये मुझे मालूम नहीं था एक उम्दा उम्र दीं थीं खुदा ने पर उसकी कद्र मैंने की नहीं अपने ही पॉंव पर गिरेगी कुल्हाड़ी ये मुझे मालूम नहीं था ©Parasram Arora मालूम नहीं था....