गांव की उस कच्ची पगडंडी पर खड़ा, मैं देखता रहा वो मकान, जो कभी घर हुआ करता था अब ढूंढता हूं उसके निशान। कि जीवन के इस अध्याय में उस औरत की अमिट छाप है जब उस आंचल के स्वर्ग तले व्यतीत किया था जीवन; अब सूना पड़ा है वह अहाता; जहां कच्ची कैरी लूटती बालकों की टोली थी। परन्तु जीवन मार्ग कब सरल रहा है..? बस कुछ वैसे ही टूटा एक कहर जब दूषित हुआ यह नहर विलीन कर मनुष्यों को अंधकार की ओर बस छोड़ गया पीछे यह खंडहर।। हम लिखते रहेंगे - Day 5 सभी सदस्यों से निवेदन है की इसी वालपेपर पर अपना collab करें। अपनी रचनाओं में दिए गए पाँचो शब्दों का प्रयोग करना अनिवार्य है। हमारी टीम का हैशटैग होगा #जोश_ए_कलम। कृपया चारों हैशटैग अपनी पोस्ट में रहना निश्चित करें। अपनी रचना Collab करने के पश्चात इसी पोस्ट पर comment में done ज़रुर लिखे। आपके पास रात 10 बजे तक का समय है, कृपया समय सीमा का खास खयाल रखे।