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"वात्सल्य रस" (पिता पुत्र का प्रेम) बाप और बेटे

"वात्सल्य रस" (पिता पुत्र का प्रेम) 

बाप और बेटे के बीच होता है प्यार अपार,
लेकिन कभी जता नहीं पाते एक दूसरे से। 

हालांकि एक बाप को बेटी बहुत प्यारी होती है, 
लेकिन वह अपने बेटे को भी बहुत ही प्यार करते हैं। 

बेटा कभी ज़ाहिर नहीं कर पाता बाप के प्रति प्यार, 
लेकिन उसके दिल में होता है अनहद प्यार। 

डरता है एक बेटा अपने बाप को गले लगाने से, 
इसका मतलब दूरी नहीं बल्कि दोनों के बीच होता है वात्सल्य रस। 

वैसे ही एक बाप अपने बेटे को कितना भी डांट ले, 
लेकिन मन में तो उसके बेटे की तरक्की ही होती है। 

बचपन में एक बाप बेटे को ऊंगली पकड़कर चलना सिखाता है, 
वही बेटा बुढ़ापे में उस बाप का आखिरी साँस तक सहारा बनता है। 

-Nitesh Prajapati 


 रचना क्रमांक :-5

#kkकाव्यमिलन
#कोराकाग़ज़काव्यमिलन
#काव्यमिलन_5
#विशेषप्रतियोगिता
#collabwithकोराकाग़ज़
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बाप और बेटे के बीच होता है प्यार अपार,
लेकिन कभी जता नहीं पाते एक दूसरे से। 

हालांकि एक बाप को बेटी बहुत प्यारी होती है, 
लेकिन वह अपने बेटे को भी बहुत ही प्यार करते हैं। 

बेटा कभी ज़ाहिर नहीं कर पाता बाप के प्रति प्यार, 
लेकिन उसके दिल में होता है अनहद प्यार। 

डरता है एक बेटा अपने बाप को गले लगाने से, 
इसका मतलब दूरी नहीं बल्कि दोनों के बीच होता है वात्सल्य रस। 

वैसे ही एक बाप अपने बेटे को कितना भी डांट ले, 
लेकिन मन में तो उसके बेटे की तरक्की ही होती है। 

बचपन में एक बाप बेटे को ऊंगली पकड़कर चलना सिखाता है, 
वही बेटा बुढ़ापे में उस बाप का आखिरी साँस तक सहारा बनता है। 

-Nitesh Prajapati 


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