संतान के भविष्य को सुख से भरना... यही हर माता-पिता का प्रथम कर्त्तव्य होता हैं। जिन्हें आप इस संसार में लाये हैं और जिनके कर्मों से ये जगत आपका भी परिचय पायेगा भविष्य में, उनके भविष्य के सुख की योजना करने से अधिक महत्व और हो भी क्या सकता हैं..!! किन्तु सुख और सुरक्षा क्या ये मनुष्य के कर्मों से प्राप्त नहीं होते....!!!? माता-पिता के दिए हुए अच्छे या बुरे संस्कार, उनके द्वारा दी गई योग्य या अयोग्य शिक्षा, क्या आज के सारे कर्मों का मूल नहीं...? संस्कार और शिक्षा से बनता है मनुष्य का चरित्र.. अर्थात् माता-पिता अपनी संतानों का जैसा चरित्र बनाते हैं.. वैसा ही बनता हैं उनका भविष्य.. किन्तु फिर भी अधिकतर माता-पिता अपनी संतानों के भविष्य को सुरक्षित करने की चिंता में उनके चरित्र निर्माण का कार्य भूल ही जाते हैं..। वस्तुत: जो माता-पिता अपनी सपनों के भविष्य की चिंता करते हैं, उनकी संतानों को कोई लाभ नहीं होता। किंतु जो माता पिता अपनी संतानों के भविष्य की नहीं, उनके चरित्र का निर्माण करते हैं, उन संतानों की प्रशस्ति समस्त संसार करता है। स्वयं विचार कीजिए 👉🙏 चरित्र