मंज़िलें हासिल हैं तो क्यूँ सफ़र याद रखेंगे मिट्टी को अब कहाँ तक ये शहर याद रखेंगे ता-उम्र मुन्तज़िर रहेंगी कच्ची सड़कें शायद जिन्हें मकाँ नसीब हैं वो क्यूँ घर याद रखेंगे मालिक-ए-मिल्कियत-ए-बयाबाँ को इत्तिला कर दो हम ख़ुदा भी बने कल तो सिफ़र याद रखेंगे मजबूर हूँ अभी वक़्त के थपेड़ों में उलझा हूँ कर्ज़-ए-हवा को मेरे कटे हुए पर याद रखेंगे वो इल्ज़ाम हक़ीक़त थे कि तोहमतें ख़ुदा जाने सब सज़ाएँ बे-फज़ूल थीं उम्र-भर याद रखेंगे तुम्हें भूलने के सबब लाख अता करे क़िस्मत 'क़ासिद' हम लकीरों से लड़ जाएँगे मगर याद रखेंगे मुन्तज़िर - One who waits - इन्तज़ार करने वाला मालिक-ए-मिल्कियत-ए-बयाबाँ - Owner of ruined property - नष्ट हो चुकी सम्पत्ति का मालिक शिफ़र - Zero - शून्य तोहमतें - False allegations - झूठे आरोप