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महरौली लौह स्तंभ ( विष्णु स्तंभ



   


      महरौली लौह स्तंभ
    ( विष्णु स्तंभ या गरुड़ स्तंभ भी कहा गया है)










 माना जाता है कि इस लौह स्तंभ का निर्माण राजा चंद्रगुप्त विक्रमादित्य (राज 375-412) ने कराया है और इसका पता उसपर लिखे लेख से चलता है, जो गुप्त शैली का है। हालांकि कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इसका निर्माण उससे बहुत पहले किया गया था, संभवत: 912 ईसा पूर्व में। इसके अलावा कुछ इतिहासकार तो यह भी मानते हैं कि यह स्तंभ सम्राट अशोक का है, जो उन्होंने अपने दादा चंद्रगुप्त मौर्य की याद में बनवाया था। 

लगभग १६०० से अधिक वर्षों से यह खुले आसमान के नीचे सदियों से सभी मौसमों में अविचल खड़ा है। इतने वर्षों में आज तक उसमें जंग नहीं लगी, यह बात दुनिया के लिए आश्चर्य का विषय है। जहां तक इस स्तंभ के इतिहास का प्रश्न है, यह चौथी सदी में बना था। इस स्तम्भ पर संस्कृत में जो खुदा हुआ है, उसके अनुसार इसे ध्वज स्तंभ के रूप में खड़ा किया गया था। चन्द्रराज द्वारा मथुरा में विष्णु पहाड़ी पर निर्मित भगवान विष्णु के मंदिर के सामने इसे ध्वज स्तंभ के रूप में खड़ा किया गया था। इस पर गरुड़ स्थापित करने हेतु इसे बनाया गया होगा, अत: इसे गरुड़ स्तंभ भी कहते हैं। १०५० में यह स्तंभ दिल्ली के संस्थापक अनंगपाल द्वारा लाया गया।

#गुगल_पिक्चर #लौह स्तंभ#महरौली#इतिहास


   


      महरौली लौह स्तंभ
    ( विष्णु स्तंभ या गरुड़ स्तंभ भी कहा गया है)










 माना जाता है कि इस लौह स्तंभ का निर्माण राजा चंद्रगुप्त विक्रमादित्य (राज 375-412) ने कराया है और इसका पता उसपर लिखे लेख से चलता है, जो गुप्त शैली का है। हालांकि कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इसका निर्माण उससे बहुत पहले किया गया था, संभवत: 912 ईसा पूर्व में। इसके अलावा कुछ इतिहासकार तो यह भी मानते हैं कि यह स्तंभ सम्राट अशोक का है, जो उन्होंने अपने दादा चंद्रगुप्त मौर्य की याद में बनवाया था। 

लगभग १६०० से अधिक वर्षों से यह खुले आसमान के नीचे सदियों से सभी मौसमों में अविचल खड़ा है। इतने वर्षों में आज तक उसमें जंग नहीं लगी, यह बात दुनिया के लिए आश्चर्य का विषय है। जहां तक इस स्तंभ के इतिहास का प्रश्न है, यह चौथी सदी में बना था। इस स्तम्भ पर संस्कृत में जो खुदा हुआ है, उसके अनुसार इसे ध्वज स्तंभ के रूप में खड़ा किया गया था। चन्द्रराज द्वारा मथुरा में विष्णु पहाड़ी पर निर्मित भगवान विष्णु के मंदिर के सामने इसे ध्वज स्तंभ के रूप में खड़ा किया गया था। इस पर गरुड़ स्थापित करने हेतु इसे बनाया गया होगा, अत: इसे गरुड़ स्तंभ भी कहते हैं। १०५० में यह स्तंभ दिल्ली के संस्थापक अनंगपाल द्वारा लाया गया।

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