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अब तेरे शहर में लोग, बिकने लगें हैं, सच को छ

अब  तेरे  शहर में लोग, बिकने  लगें  हैं,
सच  को  छोड़  सब झूठ कहने  लगें हैं।

इश्क के  हाट  खुलेआम चलने लगें  हैं,
मुहब्बत के मायने अब बदलने लगें  हैं।

गलियों में अपनी दुकाने लगाने लगें हैं,
यूँ प्यार को अब तमाशा बनाने लगें हैं।

ये थाम कर हाथ गैरों का चलने लगें हैं,
अपनों को अपनी अब दिखाने लगें हैं।

जो करे प्रेम सबसे मूरख कहाने लगें हैं, 
मुहब्बत को जिस्म से अब तौलाने लगें हैं। 

हालातों के जिम्मेदार उन्हें बताने लगें हैं,
बेबस,लाचार,गरीब को ही सताने लगें हैं।

मन की मंशा से यूँ गरीबी दिखाने लगें हैं,
धन कमाने को ही बड़प्पन बताने लगें हैं।

"राज" की बात यूँ खुलेआम करने लगें हैं,
पर्दे की बात पर्दे पर अब लिखने लगें हैं।

अब  तेरे  शहर में लोग, बिकने  लगें  हैं,
सच  को  छोड़  सब झूठ कहने  लगें हैं।
✍राजेश कुमार कुशवाहा "राज"
      सीधी(मध्यप्रदेश)

©राजेश कुशवाहा *----------!! तेरे शहर में !!---------*

अब  तेरे  शहर में लोग, बिकने  लगें  हैं,
सच  को  छोड़  सब झूठ कहने  लगें हैं।

इश्क के  हाट  खुलेआम चलने लगें  हैं,
मुहब्बत के मायने अब बदलने लगें  हैं।
अब  तेरे  शहर में लोग, बिकने  लगें  हैं,
सच  को  छोड़  सब झूठ कहने  लगें हैं।

इश्क के  हाट  खुलेआम चलने लगें  हैं,
मुहब्बत के मायने अब बदलने लगें  हैं।

गलियों में अपनी दुकाने लगाने लगें हैं,
यूँ प्यार को अब तमाशा बनाने लगें हैं।

ये थाम कर हाथ गैरों का चलने लगें हैं,
अपनों को अपनी अब दिखाने लगें हैं।

जो करे प्रेम सबसे मूरख कहाने लगें हैं, 
मुहब्बत को जिस्म से अब तौलाने लगें हैं। 

हालातों के जिम्मेदार उन्हें बताने लगें हैं,
बेबस,लाचार,गरीब को ही सताने लगें हैं।

मन की मंशा से यूँ गरीबी दिखाने लगें हैं,
धन कमाने को ही बड़प्पन बताने लगें हैं।

"राज" की बात यूँ खुलेआम करने लगें हैं,
पर्दे की बात पर्दे पर अब लिखने लगें हैं।

अब  तेरे  शहर में लोग, बिकने  लगें  हैं,
सच  को  छोड़  सब झूठ कहने  लगें हैं।
✍राजेश कुमार कुशवाहा "राज"
      सीधी(मध्यप्रदेश)

©राजेश कुशवाहा *----------!! तेरे शहर में !!---------*

अब  तेरे  शहर में लोग, बिकने  लगें  हैं,
सच  को  छोड़  सब झूठ कहने  लगें हैं।

इश्क के  हाट  खुलेआम चलने लगें  हैं,
मुहब्बत के मायने अब बदलने लगें  हैं।