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हे मानव ! सुन मैं प्रकृति हूं, मैं अपनी प्रत्येक आ

हे मानव ! सुन मैं प्रकृति हूं,
मैं अपनी प्रत्येक आकृति को,
पुनः निर्मित कर लूँगी।
मानव तू स्वयं की कृति देख,
एवं देख स्वयं की दुर्गति,
तेरी आकृति विकृत हो रही है।

©अदनासा-
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