**मन और मानव** **मन के दर्पण में जब तर्क विर्तक की धुंध जम जाती है तो वह ज्ञान और बोध का द्वार सदैव के लिए बंद कर देता है और ऐसा जीव केवल और केवल भावों की भॅवर में गोते खाता रहता है और सांसारिकता के भवसागरीय तल में अनन्तकलो के लिए भटकता रह जाता है जिस कारण मानव आपने मानसिक द्वन्द एवं बुद्धि की तुच्छ सीमा से सदैव ईश्वरीय आँकलन करता रहता है और फिर हर बार उसे ही नहीं पहचान पाता जिसे वह और उसकी आत्मा अनंत जन्मो से पुकार रही होती है और इस तरह से जीवन रुपी अवसर को बार बार गवा देता है और जन्म-मृत्य का खेल खेलता रह जाता है 🙏 अभिमन्यु (मोक्षारिहन्त) 🙏 ©Abhimanyu Dwivedi man Aur Manav