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दुनिया में एक शख़्स भी बे ख़ानुमां न हो। भरपेट रो

दुनिया में एक शख़्स भी बे ख़ानुमां न हो। 
भरपेट रोटियां मिलें जां नातवां न हो। 

पैदा हुए ग़रीब मरे तो भी बे नवा
इंसान के नसीब में ग़म जाविदां न हो। 

सोते हैं जो ज़मीन पे तारों की छांव में
मौसम की आग का कभी उन पे धुआँ न हो। 

इस्मत-दरी तो आम हुई आज मुल्क़ में
इन ज़ालिमों को ऐसी सज़ा दो अमां न हो। 

वादे किए हसीन से शाह-ओ-वज़ीर ने
डरती रियाया उनमें सियासत निहां न हो। 

सहबा न ग़म में पीना ये ग़म की दवा नहीं
इक बार जो भी पी गया फिर शादमां न हो। 

हम इश्क़ से हैं दूर अभी इस ख़याल से
जो ग़मगुसार दिखता कहीं जां सितां न हो। 

'मीरा' ने जिसको चाहा था वो गै़र का हुआ
ए दिल कहीं ये दास्ताँ विरद-ए-ज़बां न हो। #ग़ज़ल  221  2121  1221   212
🌹🌷🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹

दुनिया में एक शख़्स भी बे ख़ानुमां न हो। 
भरपेट रोटियां मिलें जां नातवां न हो। 

पैदा हुए ग़रीब मरे तो भी बे नवा
इंसान के नसीब में ग़म जाविदां न हो।
दुनिया में एक शख़्स भी बे ख़ानुमां न हो। 
भरपेट रोटियां मिलें जां नातवां न हो। 

पैदा हुए ग़रीब मरे तो भी बे नवा
इंसान के नसीब में ग़म जाविदां न हो। 

सोते हैं जो ज़मीन पे तारों की छांव में
मौसम की आग का कभी उन पे धुआँ न हो। 

इस्मत-दरी तो आम हुई आज मुल्क़ में
इन ज़ालिमों को ऐसी सज़ा दो अमां न हो। 

वादे किए हसीन से शाह-ओ-वज़ीर ने
डरती रियाया उनमें सियासत निहां न हो। 

सहबा न ग़म में पीना ये ग़म की दवा नहीं
इक बार जो भी पी गया फिर शादमां न हो। 

हम इश्क़ से हैं दूर अभी इस ख़याल से
जो ग़मगुसार दिखता कहीं जां सितां न हो। 

'मीरा' ने जिसको चाहा था वो गै़र का हुआ
ए दिल कहीं ये दास्ताँ विरद-ए-ज़बां न हो। #ग़ज़ल  221  2121  1221   212
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दुनिया में एक शख़्स भी बे ख़ानुमां न हो। 
भरपेट रोटियां मिलें जां नातवां न हो। 

पैदा हुए ग़रीब मरे तो भी बे नवा
इंसान के नसीब में ग़म जाविदां न हो।