बेशर्मी का धंधा एक अजीब से खामोशी पसरी थी बीच जलती महफिलों के, जब खींच ले गया वो मुझको चटकती बीच समाजों के, मैं खुद के वजूद को देख आंखे बंद कर लेती हूं, बेशर्मी का धंधा शर्मिंदगी से कर लेती हूं। किसी से कुछ पूछा नहीं करती अब मैं, बस अंधेरा होते ही निकल पड़ती हूं, बहुत से इंसानों को बेपर्दा होते देख लेती हूं, बेशर्मी का धंधा शर्मिंदगी से कर लेती हूं। कुछ सर्पों सा सीने से चिपक जाते है, कुछ के दातों से खुद को नोचवा लेती हूं, कुछ के मरहम से भी नया घाव ले लेती हूं, बेशर्मी का धंधा शर्मिंदगी से कर लेती हूं। मैं बंद कमरों में खुद को संवार कर बिखेर देती हूं, और खुद को बस इसी में समेट लेती हूं, मैं गंदे तालाब में खुद को सुजल के लिए तरसा लेती हूं, बेशर्मी का धंधा शर्मिंदगी से कर लेती हूं। जंगल जाना मेरी मजबूरी है कि फूलों को पा सकूं, चंद फूलों के बदले भेड़ियों से नोचवा लेती हूं, कल किस्मत खरीदने को आज सारे जख्म उठा लेती हूं, बेशर्मी का धंधा शर्मिंदगी से कर लेती हूं। यहां तो देवता भी फूलों पे हूं मोहित होते है, और मैं अभी उन्हें दर से लौटा देती हूं, इनके वजह से रात रानी और दिन का भिखारन भी खुद को बना लेती हूं, बेशर्मी का धंधा शर्मिंदगी से कर लेती हूं। यहां हर तरह के जानवर से मुलाकात होती है, फूलों को देख हैवानियत का अंदाजा लगा लेती हूं, बेशर्मी का धंधा शर्मिंदगी से कर लेती हूं। बेशर्मी का धंधा #yqbaba #yqdidi #yqtales #yqquotes #yqdada #yqhindi #yqbhashkar #yqdidichallenge