कर्ण कुंती संबोधन। सूर्य पुत्र हूं दानवीर मैं रण में मैं हुकारूंगा कुंती तेरे छह पुत्रों में से एक पुत्र मैं मारूंगा क्यों ना सोचा था जन्म समय पर मेरे तब तूने धिक्कार दिया एक मित्र दुर्योधन के बाद सारी दुनिया ने तिरस्कार किया माना की पुत्र धर्म निभाने का हक मेरा है किन्तु माता मातृ धर्म का तेरी ओर से अंधेरा है क्षत्रीय हूं है वंश मेरा भी फिर क्यों सूतपुत्र का तमगा जोड़ा है क्यों मेरी माता ने मेरे कुल मुझसे नाता तोड़ा है कहना कुछ शेष नहीं मृत्यु मिले तो मृत्यु को में स्वीकारूंगा सूर्य पुत्र हूं दानवीर मैं रण में मैं हुकारूंगा कुंती तेरे छह पुत्रों में से एक पुत्र मैं मारूंगा। ©aman sharma कर्ण कुंती संबोधन। सूर्य पुत्र हूं दानवीर मैं रण में मैं हुकारूंगा कुंती तेरे छह पुत्रों में से एक पुत्र मैं मारूंगा क्यों ना सोचा था जन्म समय पर मेरे तब तूने धिक्कार दिया एक मित्र दुर्योधन के बाद सारी दुनिया ने तिरस्कार किया माना की पुत्र धर्म निभाने का हक मेरा है किन्तु माता मातृ धर्म का तेरी ओर से अंधेरा है