समेट कर सब कुछ, वो..., अपने आँचल के, एक छोर पर, चल पड़ी, उस नदी के किनारे की, रेत पर, जहां एक समय, सभ्यताओं ने जनम लिया, रेत की जमीन मे, उसके धँसते पाँव, एहसास दिला रहे थें उसे, उसकी पारंपरिक, वेदानाओं की जकड़न का, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #लज्जा समेट कर सब कुछ, वो..., अपने आँचल के, एक छोर पर,