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भस्म उड़ा कर मिट्टी की, सर हाथी के चढ़ जाता था राणा

भस्म उड़ा कर मिट्टी की, सर हाथी के चढ़ जाता था
राणा प्रताप तेरा घोड़ा भी राजपूती धर्म निभाता था।
चेतक की हस्ति मिटा सकें अकबर तेरी औकात नहीं
मेरे ह्रदय में राणा धड़कता है जिसका तुमको आभास नही।
रामप्रसाद से हाथी ने जीवन को अर्पित कर डाला 
सौगंध वीर महाराणा की एक कण भी मुख में नही डाला।
रोइ थी हल्दी घाटी मंजर रक्त विलीन था
दिल्ली की गद्दी कंपि है  जिसपर अकबर आसीन था।
चीख पड़ी है हल्दी घाटी चेतक अध बेहोश है
अखंड सौर्य ले उड़ा है चेतक मृत्यु तक ख़ामोश है।
हरण करे तलवार प्राण जिन्हें बरन करे म्रत्यु रानी
लाखों जाने अर्पित हैं चेतक को छोड़ दे महारानी।
चेतक की चिंघाड़ बिना मेरा सूर्य उदय क्या होयगा
चेतक की यादों में राणा पल पल आँख भिगोएगा।
चेतक चढ़के युद्ध में दुश्मन भगा भगा के मारे हैं
उछल उछल के चेतक ने कई दबा दबा के गाड़े हैं।
गिरा धरा पर धड़ चेतक का कैसी मदहोशी छाई है
आँख खोल मेरे प्यारे चेतक आगे और लड़ाई हैं।
चिर हवा को उड़ता चेतक पवन देख थर्राता है
महाराणा में तेरा सिंघासन मृत्यु तक का नाता है।
ठुमक ठुमक के चेतक चलता नंगी तलवार दीवानी हैं
घोड़े हाथी बलिदान दिये इतिहासों में अमर कहानी है।

©Rahul Bhardwaj
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