उसकी, यादों के परिंदे, उड़कर.. जा पहुंचे, अतीत के शहर, जहाँ.. दम घोंटते, आशाओं के धुएं, बादल बन बरसते, हर साँझ...उसकी नम आँखों से, उसके ही, तपते लहू की गर्म अग्नि से, और..जा बैठे, उम्मीद की, टिमटिमाती रौशनी से नहाये, अपनी इच्छाओं के, मकान की मुँडेर पर, प्रेम का दाना चुगने, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #बंदिनी उसकी, यादों के परिंदे, उड़कर.. जा पहुंचे, अतीत के शहर,