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अश़्क कभी-कभी किसी कोने में मचलते रहतें हैं, तब ये

अश़्क
कभी-कभी किसी कोने में मचलते रहतें हैं,
तब ये वफादार होतें हैं
कभी-कभी बेतरतीब बेपरवाह छलकते रहतें हैं,
तब ये गुनहगार होतें हैं
ये अश़्क हैं कभी बंद पलकों में कभी खुली पलकों में,
हम में ही कहीं कुछ जीते कुछ मरते रहतें हैं
बंद पलकों की मासूमियत हो या सख़्ती,
बस ये ही समझा करतें हैं
तन से मन और दिमाग का कोई रिश्ता निभाया करतें हैं,
ये 'अश़्क' हैं सीमाएं पलकों को ये भी बना लिया करते हैं
कभी-कभी किसी वक्त ये भी पलके खाली छोड़ जाया करतें हैं| अश़्क
कभी-कभी किसी कोने में मचलते रहतें हैं,
तब ये वफादार होतें हैं
कभी-कभी बेतरतीब बेपरवाह छलकते रहतें हैं,
तब ये गुनहगार होतें हैं
ये अश़्क हैं कभी बंद पलकों में कभी खुली पलकों में,
हम में ही कहीं कुछ जीते कुछ मरते रहतें हैं
बंद पलकों की मासूमियत हो या सख़्ती,
अश़्क
कभी-कभी किसी कोने में मचलते रहतें हैं,
तब ये वफादार होतें हैं
कभी-कभी बेतरतीब बेपरवाह छलकते रहतें हैं,
तब ये गुनहगार होतें हैं
ये अश़्क हैं कभी बंद पलकों में कभी खुली पलकों में,
हम में ही कहीं कुछ जीते कुछ मरते रहतें हैं
बंद पलकों की मासूमियत हो या सख़्ती,
बस ये ही समझा करतें हैं
तन से मन और दिमाग का कोई रिश्ता निभाया करतें हैं,
ये 'अश़्क' हैं सीमाएं पलकों को ये भी बना लिया करते हैं
कभी-कभी किसी वक्त ये भी पलके खाली छोड़ जाया करतें हैं| अश़्क
कभी-कभी किसी कोने में मचलते रहतें हैं,
तब ये वफादार होतें हैं
कभी-कभी बेतरतीब बेपरवाह छलकते रहतें हैं,
तब ये गुनहगार होतें हैं
ये अश़्क हैं कभी बंद पलकों में कभी खुली पलकों में,
हम में ही कहीं कुछ जीते कुछ मरते रहतें हैं
बंद पलकों की मासूमियत हो या सख़्ती,