मनमुग्ध हृदय जज़्बातों में बेसुध होकर बह जाता है, खो देता है अस्तित्व बीज कोंपल बनकर उग आता है, फिर छोटी सी आहट कोई मन को आकर छू लेती है, आँखों के रस्ते चलकर ही दिलपर दस्तक दे जाता है, कोशिश करता हरबार चलूँ जीवन पथ की पगडण्डी पर, दुनिया के खेल तमाशे में कोई दिल को भा जाता है, उठना गिरना उठकर चलना सीखा बचपन की यादों से, जब किया इरादा चलने का तो वक़्त मदद दे जाता है, मंज़िल पर होती नजर कदम बढ़ते हैं दृढता से पथ पर, राहें बन जाती हैं ख़ुद ही नभ कदमों में झुक जाता है, उत्साह, उमंगे कदमों को थकने फिर कभी नहीं देते, पर्वत का सीना चीर कोई दशरथ मांझी बन जाता है, घनघोर निराशा के क्षण में हो साथ नहीं कोई 'गुंजन', सच्चा मुर्शिद इस जीवन को फिर से रौशन कर जाता है, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #रौशन कर जाता है#