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ओस की बूंदे जमी को प्रियतम समझ रही है रो रही है मग

ओस की बूंदे जमी को प्रियतम समझ रही है
रो रही है मगर पिय मिलन को अनुपम समझ रही है।

आतुर है मेघ मल्हार प्रेम रस बरसाने को
स्वयं को श्याम अंग प्रत्यंग को मेरे राधा समझ रही है।

व्याकुल है मन मेरा पिया मिलन को प्रेम ऋतु में
काली घटाए छन छन कर मुझपर बरस रही है।

रोम रोम में सिहरन रोम रोम में स्पंदन है
आलोकिक चंचल मन है मेरा धड़कन मचल रही है।

विरह वेदना व्याकुल करती तन मन को मेरे
प्रेम ऋतु में पिया मिलन को आंखे तरस रही है। #shyam
#radha
#prem
ओस की बूंदे जमी को प्रियतम समझ रही है
रो रही है मगर पिय मिलन को अनुपम समझ रही है।

आतुर है मेघ मल्हार प्रेम रस बरसाने को
स्वयं को श्याम अंग प्रत्यंग को मेरे राधा समझ रही है।

व्याकुल है मन मेरा पिया मिलन को प्रेम ऋतु में
काली घटाए छन छन कर मुझपर बरस रही है।

रोम रोम में सिहरन रोम रोम में स्पंदन है
आलोकिक चंचल मन है मेरा धड़कन मचल रही है।

विरह वेदना व्याकुल करती तन मन को मेरे
प्रेम ऋतु में पिया मिलन को आंखे तरस रही है। #shyam
#radha
#prem