" हो गया युग परिवर्तन मन में है बस यही उलझन कोई किसी को समझता नहीं अपना अपने को पहचानता नहीं.... हर तरफ है ईर्ष्या और द्वेष दुःख मुखौटा लगाए है, बनाए है सुख का भेष देख के रोता है आज आसमां सिसकती है धरती और सिसकता है ये जहाँ हर तरफ़ है घोर निराशा सबके अन्दर है बस मृत आशा देखो भगवन कैसा ये युग है आपने ही तो बनाया ये कलयुग है अगर मैं मर जाऊं तो मुझे दोबारा जन्म मत देना मुझे अपने पास ही रखना, मुझे अब ये संसार न देना प्यार का अभाव नहीं है, पर रिश्तों का अहसास नहीं है। बन्द कर दो अब तो खेल अपना मत दिखाओ मुझे अब कोई भी सपना हर सपना मेरा टूटा है हर बार कोई अपना छूटा है बस एक बार आप चले आओ छोड़ दूँगी ये संसार मुझे अपने संसार ले जाओ ©Richa Dhar #Dussehra2020 कलियुग