लड़कि है तू मोम की गुड़िया नही हा माना कि; जरा सी चोट पर तेरी आह निकल जाती है रो रो कर अपने आखें सूजाती है खूब नखरे भी दिखाती है हा माना कि; तेरा शरिर थोड़ा सा कमजोर है पर तू मानसिकता से कमजोर नही हाँ चल उठ अब इतिहास बदल अपने जिम्मेदारीयों को उठा उसे यूँ ना कृत्रिम बेवसियों मे छिपा चाहे जिम्मेदारी माँ-बाप की हो या स्वरचनात्मक भविष्य की जिम्मेदारी हो उसमे भी तू अपना जोर लगा समाज के कटरपंथी धारनाओं पर अपने सफलता और उज्वलकर्मों से रोक लगा हाँ तू लड़की है पर मोम की गूड़िया नही घूंघट की चादर से जिम्मेदारीयों की लौह से खूद को अब और ना छिपा अपने अस्तित्व को मजबूत बना अपने कर्मों को बखूवी निभा लोक-कथाओं को अब तू मिथ्या बना हाँ खूद को मजबूत बना, हाँ अब खूद को यूँ ना मोम बना kavita #ladki_mom_nahi #कृत्रिम=बनाबटी #बेवसियों= ससूराल की समस्याऐं , बंधन ये वों समाज के ताने ये वो वला वला # #kavita_quote #dil_ki_baate