-:"मेरा सौ रुपया":- बिटिया पैरों से लिपटी रो रही है,मैं कमबखत आज दीन ना होता तो ये सब मंजर मेरे सम्मुख न प्रकट होते,परंतु इसमें ना तो ऊपर वाले का दोष है ना ही मेरा,अगर किसी का दोष है तो वो है कर्म| मुझे पता है बिटिया के रोने का कारण परंतु उसका दिल रखने की खातिर फिर भी मैं पूछ बैठा-पैरों से उठाकर गालों पर स्नेह का चुंबन देते हुए, सुनैना बिटिया क्या हुआ तुम्हें? आज बताओ क्या चाहिए मैं ला कर दूंगा| सुनैना:-बाबू आप हर दफा तो यही कहते हैं ला के दूंगा परंतु आज तक आप मेरी एक भी फरियाद पूरी नहीं कर पाए, यह शब्दवेदी बाण हृदय पर लगते ही गहरा चोट किए परंतु कर्म दंड समझ कर भूल जाना ही सुखद समझा, मन तो हुआ जड़ दूं दो चार थप्पड़ गाल पर परंतु इसके लिए हृदय गवाही न दिया,सहसा मै बोल उठा:-तुम्हारी सौगंध खाता हूं, आज फरियाद अवश्य पूरी करूंगा| #राष्ट्रवादी_युवा_कवि_सुधांशु_निराला# मेरा सौ रुपया कहानी का प्रथम अंश|