(दलित) ------ ना गुरुड़, ना बलित हो, तुझमे ईश्वर,तुम दलित हो। तुझे स्व की चिंता है कँहा? तुम पर, धर्म मे फलित हो। तुम जान हो इस जनजीवन की तुम प्राण हो खिलते उपवन की तुम भूमिपुत्र स्वचलित हो तुझमे ईश्वर तुम दलित हो। तुम कर्म ज्ञान के हो धारक, तुम बंजर भूमि के तारक तुम स्वच्छ बनाते जीवन को तुम गतिशीलता के कारक। तुम कच्चे घर मे पलित हो तुम कला पूर्ण,तुम ललित हो। तुम दर्शन हो इस जीवन का तुम प्रेम सुधा स्खलित हो ना गुरुड़, ना बलित हो तुझमे ईश्वर, तुम दलित हो।। गीता-वेदों का सार हो तुम एक प्राकृत व्यबहार हो तुम तुझमे भ्रष्टों सी चमक नही तुझमे लालच की खनक नही, तुम ऋषियों से हो परम तुष्ट हृदय तेरा सागर सा पुष्ट तुम अंतहीन,तुम हरित हो ना गुरुड़, ना बलित हो तुझमे ईश्वर तुम दलित हो दिलीप कुमार खाँ अनपढ़ #दलित