विध्वंस बहुत ही सरल पर निर्माण बहुत कठिन हैं पतन कितना आसान पर उथान कितना कठिन हैं समता और विषमता क़े कोलाहल में अपने और पराये की पहचान कितनी कठिन हैं ©Parasram Arora कठिन