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जब वो हर वक़्त मौजूद थी उसके लिए,तब उसे क़द्र नहीं

जब वो हर वक़्त मौजूद थी उसके लिए,तब उसे क़द्र नहीं थी।
उसने मनाना भी ज़रूरी नहीं समझा, जब वो उस से नाराज़ थी।
उस वक़्त भी उसके लिए कोई और ही ज़रूरी हो गया था।
जिसे वो जान कहता था अपनी उसी को नज़र-अंदाज़ कर के 
वो किसी और को ही मनाने में लगा हुआ था।
नाराज़गी इस बात की नहीं थी की वो किसी और को मना रहा था।
नाराज़गी इस बात की थी कि उसे उसने अपने हाल पर छोड़ रखा था,
या यूॅं कहिए कि जैसे taken for granted ही ले लिया था।
बार बार उस तीसरे शख़्स की वजह से वो उसे छोड़ कर गया था।
अपनी असल पहचान को उसे उस तीसरे की वजह से वो छुपाता था 
उसकी तरफ़ से वैसे तो वो हमेशा ही आज़ाद था ।
कोई पाबंदी नहीं थी,जिस से चाहे,जैसा चाहे रिश्ता वो निभा सकता था।
वो तो बस इतना चाहती थीं कि,वो उसकी उम्मीदों को भी पूरा करे, 
क्यूॅंकि वो ख़ुद भी तो उस से कितनी उम्मीदें रखता था।
सब कुछ देख कर,समझ कर भी वो ख़ामोश रहती थी 
और वो उसकी उलझनों को समझने की कोशिश भी नहीं करता था।
आख़िर सब्र टूट गया उसका, 
फ़िर इन तमाम हालातों में क्या करती वो? 
फ़िर एक ही रास्ता नज़र आया उसे और उस से दूर हो गई वो।
इसलिए नहीं कि उसे अपनी अहमियत समझा सके, 
बल्कि इसलिए दूर हो गई वो, क्यूॅंकि सच में थक गई थी वो।
वो जाएगी लौट कर ज़रूर फ़िर से, जब वो पुकारेगा उसे दिल से 
लेकिन बस थोड़ा सा और वक़्त चाहती है वो।

#bas yunhi ek qissa-e-mukhtasar .......

©Sh@kila Niy@z #basekkhayaal #basyunhi 
#mohabbat 
#qissa 
#nojotohindi 
#Quotes 
#26Sept 
shayari on life
जब वो हर वक़्त मौजूद थी उसके लिए,तब उसे क़द्र नहीं थी।
उसने मनाना भी ज़रूरी नहीं समझा, जब वो उस से नाराज़ थी।
उस वक़्त भी उसके लिए कोई और ही ज़रूरी हो गया था।
जिसे वो जान कहता था अपनी उसी को नज़र-अंदाज़ कर के 
वो किसी और को ही मनाने में लगा हुआ था।
नाराज़गी इस बात की नहीं थी की वो किसी और को मना रहा था।
नाराज़गी इस बात की थी कि उसे उसने अपने हाल पर छोड़ रखा था,
या यूॅं कहिए कि जैसे taken for granted ही ले लिया था।
बार बार उस तीसरे शख़्स की वजह से वो उसे छोड़ कर गया था।
अपनी असल पहचान को उसे उस तीसरे की वजह से वो छुपाता था 
उसकी तरफ़ से वैसे तो वो हमेशा ही आज़ाद था ।
कोई पाबंदी नहीं थी,जिस से चाहे,जैसा चाहे रिश्ता वो निभा सकता था।
वो तो बस इतना चाहती थीं कि,वो उसकी उम्मीदों को भी पूरा करे, 
क्यूॅंकि वो ख़ुद भी तो उस से कितनी उम्मीदें रखता था।
सब कुछ देख कर,समझ कर भी वो ख़ामोश रहती थी 
और वो उसकी उलझनों को समझने की कोशिश भी नहीं करता था।
आख़िर सब्र टूट गया उसका, 
फ़िर इन तमाम हालातों में क्या करती वो? 
फ़िर एक ही रास्ता नज़र आया उसे और उस से दूर हो गई वो।
इसलिए नहीं कि उसे अपनी अहमियत समझा सके, 
बल्कि इसलिए दूर हो गई वो, क्यूॅंकि सच में थक गई थी वो।
वो जाएगी लौट कर ज़रूर फ़िर से, जब वो पुकारेगा उसे दिल से 
लेकिन बस थोड़ा सा और वक़्त चाहती है वो।

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