बचपन मे था सबका लाडला जो आज निकम्मा कहलता वो जिसे मिली हर चीज़ तब जो आज शौक से घबराता वो नही पता था सही गलत बस ये पता था राजा है वो आज अपने मन मे दुनिया का सबसे बड़ा गरीब कहलाता वो था माँ बापू का लाडला वो जिसे फर्क नही दुनिया दरी की आज उसी को कहते, देख जरा उसके बालक की होशयरी को नही समझते उसे क्या चाहिए बस यही समझते वो उन्हें नहीं समझता आज भी अंदर रोते रोते खुद में खुद को ढूंढ़ता फिरता मिला जिसे औकात से बढ़कर उसे सम्भाल न पाया वो जब समझ उस समझ की हुई तब क्या पछताता रहा वो नही है अवल्ल किसी चीज़ में फिर भी खुश करना चाहे सबको वो करे सही पर हुआ गलत ओर हर पल खुद में रोया वो शायद इस दुनिया के लायक न था नही समझ मे आया जो कहाँ क्यों फिर भेजा खुदा ने बनने को कलंक जिसको गलत किया हरवक्त था जिसने उसे सुधारना सम्भव न था जो आज अपने मन मे दुनिया का सबसे बड़ा गरीब कहलाता वो बचपन मे था सबका लाडला जो आज निकम्मा कहलता वो जिसे मिली हर चीज़ तब जो आज शौक से घबराता वो नही पता था सही गलत बस ये पता था राजा है वो आज अपने मन मे दुनिया का सबसे बड़ा गरीब कहलाता वो