सोलह सोमवार की, इक साँझ को, दिल की, दहलीज पर अपनी, बैठी वो, गिन रही थी, अँगुलियों के पोरों पर, अपने सत्रहवें सावन मे, बरसी बारिश की उन बूँदों को, जो मन के अहाते में, सोते समय, गिरी थीं, इच्छाओं की टूटी खपरैल से, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #अपराजिता सोलह सोमवार की, इक साँझ को, दिल की, दहलीज पर अपनी,