उपमान छन्द दिनभर करता काम है , वह तो मनरेगा । रहकर भूखे पेट भी , सुनता क्या लेगा ।। मजे करे सरपंच जी , करके अब धोखा । मिलता नही गरीब को , थोड़ा भी चोखा ।। खुला सुबह से आज है , ठेका सरकारी । जी भर पीकर देख लो , भूलो तरकारी ।। निशिदिन जैसे आज भी , सोयेंगे बच्चे । बनो नही अब आप भी , कलयुग में सच्चे ।। गाँव-गाँव यह रीति है , सब करते थैय्या । मेरे तो सरपंच जी , है बड़का भैय्या ।। दिये न ढेला नोन का , बनते है दानी । देते भाषण मंच पर , बन जाते ज्ञानी ।। करना आज विचार सब , पग धरना धीरे । बिछे राह में शूल है , हम सबके तीरे ।। जाग गये तो भोर है , जीवन में तेरे । वरना राई नोन के , लेते रह फेरे ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR उपमान छन्द दिनभर करता काम है , वह तो मनरेगा । रहकर भूखे पेट भी , सुनता क्या लेगा ।। मजे करे सरपंच जी , करके अब धोखा । मिलता नही गरीब को , थोड़ा भी चोखा ।। खुला सुबह से आज है , ठेका सरकारी । जी भर पीकर देख लो , भूलो तरकारी ।।