कितना अर्थ हींन है ये नित्यकर्म ......ये हताशा ये अकेलापन .....क्यों नहीं क़र पाते हम इन. अंधविश्वसो का अतिक्रमण .......कैसे निर्जीव बना देता है हमे ये पुरातन संस्कारो का खोखला बंधन .... अर्थ हीनता