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"भाई, बस आज कौनो तरीके से कोई काम मिल जाए तो भगवान

"भाई, बस आज कौनो तरीके से कोई काम मिल जाए तो भगवान का भला होगा। ३ दिन बीतन को आए, घर पे खाए को अब कुछ बचा नहीं है। डॉक्टर बाबु भी कह रहे थे, मुन्ने को माई का दूध ठीक मात्रा में नहीं मिला तो....", कहते-कहते उस मजदूर का गला रुंधा-सा हो गया था।
"हां भैया, अब तो किशन-कन्हैया ही बेड़ा पार लगाए तो थोड़ा सुख हम भी भोग लें", साथ ही चल रहे हरिया ने कहा।  उसने बड़े बाबू से बात तो कर रखी थी उन दोनों की और आज फिर उसी सिलसिले में दुबारा नौकरी की दुहाई लगाने जा रहा था। दोनों के घर की हालत एक-सी थी। कभी कलेवा खा लिया, तो किसी दिन रात का खाना। इस करोना नाम की राक्षसी ने तो भूखा मरने तक की नौबत ला रखी थी। 
बस बातें करते और नौकरी की दुआ करते अपने बाकी साथियों के साथ रेल की पटरी पे चले जा रहे थे। 
फिर कुछ भयानक हुआ और चंद लम्हों के बाद सब शांत हो गया था। अब कोई अपनी नौकरी की बाट नहीं जोह रहा था और न ही किसी को घर-परिवार की कोई चिंता। उस तेज़ गुजरते ट्रेन ने अपने नीचे सारी आवाज़ें दबा ली थी। अब तो बस दूर गांव में मुन्ना भूख से बिलख रहा है और हरिया की बेटी बापू के इंतज़ार में दरवाज़े पे ताक लगाए बैठी है। और उनकी ही तरह बाकी परिवार भी घर के मुखिया की राह ताक रहे हैं आंखों में खालीपन समेटे ढेरों सवाल लिए। "भाई, बस आज कौनो तरीके से कोई काम मिल जाए तो भगवान का भला होगा। ३ दिन बीतन को आए, घर पे खाए को अब कुछ बचा नहीं है। डॉक्टर बाबु भी कह रहे थे, मुन्ने को माई का दूध ठीक मात्रा में नहीं मिला तो....", कहते-कहते उस मजदूर का गला रुंधा-सा हो गया था।
"हां भैया, अब तो किशन-कन्हैया ही बेड़ा पार लगाए तो थोड़ा सुख हम भी भोग लें", साथ ही चल रहे हरिया ने कहा।  उसने बड़े बाबू से बात तो कर रखी थी उन दोनों की और आज फिर उसी सिलसिले में दुबारा नौकरी की दुहाई लगाने जा रहा था। दोनों के घर की हालत एक-सी थी। कभी कलेवा खा लिया, तो किसी दिन रात का खाना। इस करोना नाम की राक्षसी ने तो भूखा मरने तक की नौबत ला रखी थी। 
बस बातें करते और नौकरी की दुआ करते अपने बाकी साथियों के साथ रेल की पटरी पे चले जा रहे थे। 
फिर कुछ भयानक हुआ और चंद लम्हों के बाद सब शांत हो गया था। अब कोई अपनी नौकरी की बाट नहीं जोह रहा था और न ही किसी को घर-परिवार की कोई चिंता। उस तेज़ गुजरते ट्रेन ने अपने नीचे सारी आवाज़ें दबा ली थी। अब तो बस दूर गांव में मुन्ना भूख से बिलख रहा है और हरिया की बेटी बापू के इंतज़ार में दरवाज़े पे ताक लगाए बैठी है। और उनकी ही तरह बाकी परिवार भी घर के मुखिया की राह ताक रहे हैं आंखों में खालीपन समेटे ढेरों सवाल लिए।

#मज़दूरीएककहानी   #YourQuoteAndMine
Collaborating with YourQuote Didi
"भाई, बस आज कौनो तरीके से कोई काम मिल जाए तो भगवान का भला होगा। ३ दिन बीतन को आए, घर पे खाए को अब कुछ बचा नहीं है। डॉक्टर बाबु भी कह रहे थे, मुन्ने को माई का दूध ठीक मात्रा में नहीं मिला तो....", कहते-कहते उस मजदूर का गला रुंधा-सा हो गया था।
"हां भैया, अब तो किशन-कन्हैया ही बेड़ा पार लगाए तो थोड़ा सुख हम भी भोग लें", साथ ही चल रहे हरिया ने कहा।  उसने बड़े बाबू से बात तो कर रखी थी उन दोनों की और आज फिर उसी सिलसिले में दुबारा नौकरी की दुहाई लगाने जा रहा था। दोनों के घर की हालत एक-सी थी। कभी कलेवा खा लिया, तो किसी दिन रात का खाना। इस करोना नाम की राक्षसी ने तो भूखा मरने तक की नौबत ला रखी थी। 
बस बातें करते और नौकरी की दुआ करते अपने बाकी साथियों के साथ रेल की पटरी पे चले जा रहे थे। 
फिर कुछ भयानक हुआ और चंद लम्हों के बाद सब शांत हो गया था। अब कोई अपनी नौकरी की बाट नहीं जोह रहा था और न ही किसी को घर-परिवार की कोई चिंता। उस तेज़ गुजरते ट्रेन ने अपने नीचे सारी आवाज़ें दबा ली थी। अब तो बस दूर गांव में मुन्ना भूख से बिलख रहा है और हरिया की बेटी बापू के इंतज़ार में दरवाज़े पे ताक लगाए बैठी है। और उनकी ही तरह बाकी परिवार भी घर के मुखिया की राह ताक रहे हैं आंखों में खालीपन समेटे ढेरों सवाल लिए। "भाई, बस आज कौनो तरीके से कोई काम मिल जाए तो भगवान का भला होगा। ३ दिन बीतन को आए, घर पे खाए को अब कुछ बचा नहीं है। डॉक्टर बाबु भी कह रहे थे, मुन्ने को माई का दूध ठीक मात्रा में नहीं मिला तो....", कहते-कहते उस मजदूर का गला रुंधा-सा हो गया था।
"हां भैया, अब तो किशन-कन्हैया ही बेड़ा पार लगाए तो थोड़ा सुख हम भी भोग लें", साथ ही चल रहे हरिया ने कहा।  उसने बड़े बाबू से बात तो कर रखी थी उन दोनों की और आज फिर उसी सिलसिले में दुबारा नौकरी की दुहाई लगाने जा रहा था। दोनों के घर की हालत एक-सी थी। कभी कलेवा खा लिया, तो किसी दिन रात का खाना। इस करोना नाम की राक्षसी ने तो भूखा मरने तक की नौबत ला रखी थी। 
बस बातें करते और नौकरी की दुआ करते अपने बाकी साथियों के साथ रेल की पटरी पे चले जा रहे थे। 
फिर कुछ भयानक हुआ और चंद लम्हों के बाद सब शांत हो गया था। अब कोई अपनी नौकरी की बाट नहीं जोह रहा था और न ही किसी को घर-परिवार की कोई चिंता। उस तेज़ गुजरते ट्रेन ने अपने नीचे सारी आवाज़ें दबा ली थी। अब तो बस दूर गांव में मुन्ना भूख से बिलख रहा है और हरिया की बेटी बापू के इंतज़ार में दरवाज़े पे ताक लगाए बैठी है। और उनकी ही तरह बाकी परिवार भी घर के मुखिया की राह ताक रहे हैं आंखों में खालीपन समेटे ढेरों सवाल लिए।

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kajalkiran8793

Kajal Kiran

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