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'मीरा' पाती प्रेम की, लिखती सुबहो शाम। दुखीजन पढ

'मीरा' पाती  प्रेम  की, लिखती सुबहो शाम।
दुखीजन पढ़ गले मिले, छोड़ छाड़के काम।

✍मनजीत शर्मा 'मीरा' #दोहा
'मीरा' पाती  प्रेम  की, लिखती सुबहो शाम।
दुखीजन पढ़ गले मिले, छोड़ छाड़के काम।

✍मनजीत शर्मा 'मीरा'
'मीरा' पाती  प्रेम  की, लिखती सुबहो शाम।
दुखीजन पढ़ गले मिले, छोड़ छाड़के काम।

✍मनजीत शर्मा 'मीरा' #दोहा
'मीरा' पाती  प्रेम  की, लिखती सुबहो शाम।
दुखीजन पढ़ गले मिले, छोड़ छाड़के काम।

✍मनजीत शर्मा 'मीरा'