आँसूं✍️✍️✍️ मेरे आँसू निकले थे, लेकिन उसे कोई न देख सका। समेट लिया जब आकाश के उन्हें सीने में, तब जाकर वो सबका हृदय जीत सका। अब तरसती हैं स्वयं मेरी ही आंखे उन बेजान नीर से मिलने को, एक एक आँसू की बूंद को जब अपनाया सुने आकाश ने, तब जाकर आकाश गंगा बन वो सबको अपनी ओर आकर्षित कर सका। सम्मान न मिला सका उन्हें कभी, जब तक रहे वो मेरी आँखों में, आज प्रसन्न हैं वो सारे जो हैं अब खुले आकाश में। प्रकृति का जब वो सुंदर अंश बन गया, तब जाकर वो सबका मन मोह सका। सौंप दिए सारे आँसू मैंने सुने आकाश को, जो चमके दिखने लगे इस धरा के जीव को जब भी टूटता है तो लोग विनती करते हैं अब उसे देखकर, काव्य द्वारा सबको बताऊंगी के मेरा आँसूं अब पूजा के योग्य बन सका---। ©Richa Dhar #WritingForYou आँसू