उथल-पुथल और था हृदय शिथिल, जब बोले वो आज शाम को मिल, अहा! भावना प्रबल, मन चंचल, मधुर स्वर कल-कल, उर में हलचल। ऊषा की सुनहरी वीणा नहीं, आज सायं का वो राग सुनना है, पक्षियों के कलरव का अनुचर नही, आज भ्रमर हूं, पुष्प पराग चुनना है। मेघों को रथ बना लूं, पक्षियों को अश्व, सूर्य को नीचे खींच लूं, होता जो बस, इन दिवाकर को भी क्या आज विश्राम नहीं, मन आवेशित अधीर अभी तक शाम नहीं। संध्या है अब, थी दिशा स्तब्ध, भय पग-पग, न बोले कोई खग, जल में मछली छप-छप, इस सन्नाटे में दो जन उस सरित-किनारे, शिलावत मूक खड़े, एक-दूसरे को निहारे। आज जो गीत गाने आया था, वो गा न सका, मन की वीणा तो बजी,तारों में स्वर आ न सका, तब समय ने हमें टोक दिया, उत्तर मांगता, पर उसने आगे बढ़ने से रोक दिया। प्रथम भेंट.... #hindi_diwas