कुछ धुंधली धुंधली सी यादें जब जमके हुई थीं बरसातें ठिठुर रहे हम बीच सड़क चाहकर भी मौन न तोड़ सके चुप चुप दूजे को देख रहे जब मजदूर आग थे सेंक रहे अब केवल रह गई बातें जब जमके हुई थी - - - खामोशी में भी सब कुछ था जो हलचल सी दे जाता था इक चेहरा दिल मे समा गया जो भूले भूल न पाता था अब होंगी न वो मुलाकातें जब जमके हुई थी- - - एक कुछ अर्सा पहले लिखा गीत आप सभी हाज़रीन की नज़्र।